Tuesday, April 7, 2009

बंगारप्पा चुनाव आयोग की शरण में


बेंगलूर।
राज्य के प्रतिष्ठित शिमोगा संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के प्रत्याशी और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एस बंगारप्पा ने चुनाव आयोग में मुख्यमंत्री बीएस येड्डीयुरप्पा के विरुद्ध शिकायत दर्ज कराई है। सोमवार को यहां एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए बंगारप्पा ने कहा कि मुख्यमंत्री लगातार आचार संहिता और जनप्रतिनिधि कानून का उल्लंघन कर रहे हैं। उनके विरुद्ध आयोग को तत्काल कार्रवाई करते हुए स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की प्रक्रिया सुनिश्चित करनी चाहिए।

उन्होंने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री अपने गृह जिले में लगातार चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन कर रहे हैं और आचार संहिता के प्रभावकारी क्रियान्वयन में अधिकारी विफल साबित हो रहे हैं। शिमोगा क्षेत्र में अवैद शराब, नकद राशि और अन्य सामग्री के परिवहन पर आयोग द्वारा रोक लगाए जाने की मांग करते हुए बंगारप्पा ने आशंका जताई कि इस स्थिति में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सम्पन्न करा पाना काफी मुश्किल है।
अपनी शिकायत में बंगारप्पा ने येड्डीयुरप्पा पर कई आरोप लगाए हैं, जिनमें शिमोगा में विभिन्न संगठनों और समुदायों के नेताओं की बैठक में येड्डीयुरप्पा द्वारा अपने पुत्र के लिए वोट मांगने के लिए पद का दुरुपयोग करने का आरोप भी शामिल है। शिमोगा क्षेत्र में बंगारप्पा का मुकाबला मुख्यमंत्री के पुत्र और भाजपा प्रत्याशी बीवाई राघवेन्द्र से है। बंगारप्पा ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार के एक मंत्री ने शिमोगा के एक मंदिर में एक जाति विशेष के सदस्यों की बैठक में भाजपा प्रत्याशी के समर्थन के बदले मंदिर को दस लाख रुपए दान में दिए हैं। इस संबंध में भी एक शिकायत चुनाव आयोग में दर्ज की गई है। बंगारप्पा ने जिला प्रशासन के कुछ अधिकारियों की कार्य प्रणाली पर भी अंगुली उठाई है। उन्होंने आरोप लगाया है कि कुछ अधिकारी, स्कूल-कॉलेजों और मुजरई मंदिरों में प्रचार बैठकों का आयोजन कर रहे हैं।
एक सवाल के जवाब में बंगारप्पा ने कहा कि उनके साथी कागोडू तिम्मप्पा ने हिन्दूवादी संगठनों के विरुद्ध कोई भड़काऊ भाषण नहीं दिया। उनका कहना था कि मीडिया एक हिस्से ने तिम्मप्पा के भाषण को गलत संदर्भ में पेश किया है।

Saturday, April 4, 2009

चिड़ियाघर में पर्यटकों का रिकॉर्ड

मैसूर। शहर में मैसूर चिड़ियाघर के नाम से विख्यात श्रीचामराजेन्द्र जूलॉजिकल गार्डन ने वर्ष 2008-09 के दौरान एक और बड़ी उपलब्धि हासिल की है। इस वर्ष यहां रिकॉर्ड संख्या में पयर्टक आए हैं।
चिड़ियाघर के कार्यकारी निदेशक विजय राजन सिंह ने शुक्रवार को पत्रकारों को बताया कि वैश्विक आर्थिक मंदी के दौर में मैसूर चिड़ियाघर ने बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित किया है। मार्च के अंत तक यहां लगभग 21 लाख 40 हजार से अधिक पर्यटक आ चुके थे। इनमें चार लाख से अधिक स्कूली विद्यार्थी भी शामिल हैं। इसके साथ ही चिड़ियाघर ने राजस्व संग्रहण में भी नया रिकॉर्ड स्थापित किया है। पिछले वित्तीय वर्ष में चिड़ियाघर ने पांच करोड़ आठ लाख रुपए राजस्व के रूप में एकत्रित किए थे, जो इस वर्ष बढ़कर छह करोड़ 54 लाख रुपए तक पहुंच गए।
उन्होंने कहा कि महलों का शहर मैसूर दक्षिण भारत का एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन गया है और अब वह पर्यटकों की प्राथमिकता सूची में वह काफी ऊपर रहता है। चिड़ियाघर की योजना इसके सम्पूर्ण विकास के लिए एक व्यापक परियोजना तैयार करने की है, जिसमें यहां के पशु-पक्षियों और जीव-जन्तुओं का बेहतर ढंग से संक्षरण किया जा सकेगा। साथ ही, यहां बुनियादी सुविधाओं का समुचित प्रबंध किया जा सकेगा। यहां दुलर्भ प्रजाति के जीव-जन्तुओं के प्रजनन की सुविधा भी विकसित की जाएगी। सिंह ने चिड़ियाघर द्वारा यहां के पशु-पक्षियों को गोद देने की योजना में भी नया रिकॉर्ड बनाया है। वर्ष 2008-09 के दौरान चिड़ियाघर के 194 पशु-पक्षी विभिन्न संस्थाओं और नागरिकों ने गोद लिए हैं। इनमें बहुत बड़ी संख्या हाथियों और शेरों की है। गोद लेने की इस योजना के अंतर्गत 32 लाख 68 हजार 689 रुपए की राशि एकत्रित की गई है। उन्होंने कहा कि आमतौर पर पशुओं को गोद लेने का चलन पश्चिमी देशों में रहा है लेकिन आजकल भारत में भी इस नए चलन को अच्छा समर्थन मिल रहा है।
देश में पशु-पक्षियों को गोद लेने की योजना वर्ष 1984 में प्रारम्भ की गई थी लेकिन उस समय इस योजना को उचित समर्थन नहीं मिल पाया और वह बंद हो गई। बाद में वर्ष 2001 में इसकी पुनः शुरुआत की गई। मैसूर चिड़ियाघर देश के गिने-चुने सफलतम चिड़ियाघरों में से एक है और यहां गोद लेने वाली योजना को बहुत अधिक समर्थन मिला है। यह देश के सबसे पुराने चिड़ियाघरों में से भी एक है और अन्य चिड़ियाघरों के लिए एक आदर्श है।

समस्याओं की जड़ तक पहुँचना ज़रूरी


"चीजें हमेशा वैसी नहीं होतीं जैसी वे दिखती हैं।'
प्रत्येक संगठन के सामने अपनी तरह की खास समस्याएं होती हैं जिनसे उनके कारोबारी संचालन पर असर पड़ने के साथ ही उनके लाभ में कमी लाती हैं और जिनके कारण ग्राहकों के असंतोष से भी संगठन को दो-चार होना पड़ता है। अधिकांश व्यावसायिक संगठनों की कोशिश यह होती है कि इन समस्याओं का त्वरित व तात्कालिक समाधान ढूंढा जाए। इस कोशिश में वे समस्या के मूल कारणतक नहीं पहुंच पाते हैं। स्वाभाविक है कि ऐसे संगठनों के सामने समस्याएं बार-बार खड़ी होती रहती हैं। पिछले कुछ वर्षों में कई ऐसे गुणवत्ता नियंत्रण (क्वालिटी कंट्रोल/क्यूए) एवं कारोबारी विकास कार्यक्रम सामने आए हैं जो समस्याओं के मूल कारण को पहचानने पर केन्द्रित हैं। इनके तहत अधिक ध्यान इस बात पर दिया जाता है कि संगठन के काम-काज के दौरान उत्पन्न होने वाली कमियों और गलतियों को न्यूनतम स्तर पर लाया जाए। इसके लिए स्वाभाविक तौर पर ऋुटिविहीन प्रक्रियाओं को अपनाकर बेहतरीन प्रदर्शन करने पर जोर दिया जाता है। ऐसे कार्यक्रमों में जीरो डिफेक्ट्‌स, क्वालिटी सर्कल्स, सिक्स सिग्मा और टीक्यूएम जैसे कार्यक्रमों को गिना जा सकता है जो व्यावसायिक संगठनों में काफी लोकप्रिय हो चुके हैं। इन सभी कार्यक्रमों का मूल सिद्धांत काफी मिलता-जुलता है। इसे यूं समझा जा सकता है कि "प्रत्येक काम पहली ही बार बिल्कुल सटीक ढंग से किया जाए।' इस औजार को कई संगठनों ने व्यापार संचालन एवं उत्पादन संबंधी सभी समस्याओं के समाधान के लिए अपनाया है। अगर अपने उत्पाद में कोई व्यापारी किसी प्रकार का मूल्य संवर्द्धन नहीं भी करता है तो भी यह सिद्धांत उसके लिए काफी कारगर हो सकता है।
इस तकनीक के साथ ही समस्याओं के मूल कारण का विश्लेषण (रूट कॉज एनालिसिस) भी समस्याओं से निपटने में कारगर साबित हो सकता है। इससे विभिन्न संगठनों को अपने कार्य संचालन की राह में आने वाली बाधाएं दूर करने और प्रक्रियात्मक बेहतरी में मदद मिलती है। साथ ही उन क्षेत्रों की पहचान भी की जा सकती है जिनमें संचालनात्मक या प्रक्रियात्मक संशोधन से सर्वाधिक लाभ मिल सके। रूट कॉज एनालिसिस उन कारणों को जड़ से समाप्त करने में मदद देता है जिनके चलते समस्याएं बार-बार उभरकर सामने आती हैं। यह तभी संभव है जब किसी समस्या का मूल कारण समझ लिया जाए। इस सिद्धांत के नाम से ही स्पष्ट है कि मूल कारण को समझ कर ही समस्या को पूरी तरह से समझा और उसका निपटारा किया जा सकता है।
वास्तव में रूट-कॉज एनालिसिस की प्रक्रिया किसी भी समस्या के बारे में पूंछे जाने वाले तीन मुख्य प्रश्नों के उत्तर ढूंढती है कि समस्या क्या है, यह कैसे उत्पन्न हुई और क्यों उत्पन्न हुई। यह समस्याओं के समाधान का सबसे प्रभावी तरीका है क्योंकि इसके तहत अपनाई जानेवाली समाधान प्रक्रिया किसी भी प्रकार की समस्या के निपटारे का सबसे आसान और स्वाभाविक प्रक्रिया है। अगर समस्या का विश्लेषण प्रभावी ढंग से किया जा सके तो इससे उच् च गुणवत्तायुक्त प्रक्रियात्मक बेहतरी का औजार भी हाथ लग सकती है। इसकी मुख्य विशेषता यह है कि इससे समस्या उत्पन्न होने का मूल कारण समझा जा सकता है। इससे संगठन के उन लोगों को आसानी होती है जो समस्या निपटाने की जिम्मेदारी निभाते हैं। उन्हें यह समझ में आता है कि कोई प्रक्रिया क्यों असफल हो गई और इस प्रकार की असफलता से निपटने के लिए क्या उपाय कारगर रहेंगे ताकि भविष्य में ऐसी समस्याओं से बचा जा सके।
इस तरह, संगठनों को समस्याओं का प्रभावी निपटारा सुनिश्चित करना हो तो समस्याओं के मूल कारणों के विश्लेषण करने के साथ ही उन कारणों का दूर करना होता है। इसके लिए उन्हें निम्नलिखित चार चरणों से होकर गुजरना पड़ता है जो इस प्रकार हैं
1.समस्या से संबंधित सभी आंकड़े जुटाना
2. आंकड़ों का विश्लेषण करना
3. मूल कारण की पहचान करना और
4. समस्या को हल करने का तरीका तलाशकर उसे क्रियान्वित करना।
अक्सर हम किसी समस्या के आभासी कारण को ही उसका मूल कारण मान लेते हैं। समस्याओं के आभासी कारण वस्तुत: समस्या के स्पष्ट या तात्कालिक कारण होते हैं। कई बार ऐसा होता है कि आभासी कारण को ही हम समस्या का मूल कारण मान लेते हैं जबकि समस्या की जड़ कहीं और छिपी होती है।
कारोबारी संदर्भ में समस्याओं के मूल कारणों के विश्लेषण को "व्यावसायिक संचालन तथा प्रक्रिया में खामी वाले क्षेत्रों की पहचान' के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। प्रायोगिक नजरियों से भी देखें तो यह एक ऐसा औजार है जो हमारे आम जीवन में विभिन्न लोगों या परिस्थितियों को समझने में काफी मदद देता है।

बलारी में जद-एस का प्रत्याशी नहीं

कार्यालय संवाददाता
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बेंगलूर। राज्य में लोकसभा चुनावों के अंतर्गत जनता दल (एस) बल्लारी संसदीय क्षेत्र में अपना प्रत्याशी नहीं उतारेगा। दल को लगता है कि बल्लारी में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की आर्थिक सुदृढ़ता का उसका प्रत्याशी मुकाबला नहीं कर सकता है, इसलिए दल ने यह फैसला किया है। यह जानकारी शुक्रवार को जद (एस) के प्रदेशाध्यक्ष एचडी कुमारस्वामी ने दी।
यहां पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहां कि बल्लारी जिले का वातावरण विपक्षी दलों के लिए ठीक नहीं है। वहां संविधान के अनुसार मतदाताओं को चुनाव के प्रेरित करने का प्रयास नहीं किया जाता और वहां का माहौल अलोकतांत्रिक पद्धति जैसा हो गया है। बल्लारी जिले के भाजपा नेताओं पर अपने प्रत्याशी की जीत के लिए अपनी सत्ता और धन का बेजा इस्तेमाल करने का आरोप लगाते हुए पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि जद (एस) ने फैसला किया है कि बल्लारी में दल को कोई प्रत्याशी चुनाव नहीं लड़ेगा। चुनाव आयोग के आंकड़ों का हवाला देते हुए कुमारस्वामी ने कहा कि चुनाव आचार संहिता उल्लंघन के मामले में बल्लारी क्षेत्र सबसे ऊपर है। वहां राज्य के अन्य क्षेत्रों के साथ अन्य राज्यों के मुकाबले भी आचार संहिता का उल्लंघन, अवैध शराब, धन, सामग्री की बरामगदी और चुनाव संबंधी हिंसा की वारदातों में बेतहाशा वृद्धि हुई है.
बल्लारी जिले के खदान क्षेत्रों का दौरा किए जाने के बारे में पूछे जाने पर कुमारस्वामी ने कहा कि वह सिर्फ इस बात की सच्चाई पता लगाने वहां गए थे कि बल्लारी में भाजपा नेताओं द्वारा एक बहुत बड़े स्तर पर अवैध खनन गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा है। इन अवैध गतिविधियों को रोकने के लिए चुनाव आयोग से हस्तक्षेप की मांग करते हुए कुमारस्वामी ने कहा कि चुनाव के दौरान इस अवैध खनन की साजिश को सफल होने से रोका जा सकता है। उन्होंने दावा किया कि अवैध खनन गतिविधियों से प्राप्त राशि का उपयोग ही चुनाव में किया जा रहा है।
बेंगलूर दक्षिण क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी अनंतकुमार द्वारा शुरू की गई रंग यात्रा पर कड़ी आपत्ति उठाते हुए उन्होंने कहा कि इसमें भगवान गणेश की प्रतिमा का उपयोग करना चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन है। इस संबंध में वह दल की तरफ से जल्द ही एक शिकायत भाजपा प्रत्याशी के विरुद्ध आयोग से करेंगे।

Wednesday, April 1, 2009

बेंगलूर का सेकंड हैंड कार बाजार टाटा "नैनो' से आशंकित


बेंगलूूर। अपने वादे के अनुरूप भारत की सबसे बड़ी वाहन निर्माता कंपनी टाटा मोटर्स ने भले ही दुनिया की सबसे सस्ती लखटकिया कार "नैनो' भारतीय बाजार में उपलब्ध करवा दी है लेकिन इस कार के बारे में शहर में कोई खास चर्चा सुनने को नहीं मिल रही है। यहां के कार प्रेमियों की जमात सिर्फ कीमत के आधार पर किसी कार के बारे में अपना मत बनाने को तैयार नहीं हैं। यहां की सड़कों पर अन्तरराष्ट्रीय रूप से मशहूर तथा करोड़ों रुपयों की कीमत वाली विलासितापूर्ण कार मॉडलों को इठलाते हुए चलते देखा जाता है। इस बाजार में सिर्फ सस्ता होना किसी कार का आकर्षण नहीं माना जाता है। बहरहाल, बेंगलूर में एक विशेष कार बाजार नैनो लांच होने के बाद लगातार चिन्ताएं जता रहा है। यह सेकंड हैंड कारों का बाजार है। इस बाजार को टाटा की सस्ती कार से अपने धंधे में प्रतियोगिता बढ़ जाने की आशंका दिखने लगी है। नैनो को बाजार में लांच करने के लिए जो समय चुना गया है उससे सेकंड हैंड कार बाजार की चिन्ताएं अधिक बढ़ गई हैं।
कुछ सेकंड हैंड कार डीलरों का कहना है कि एक तो इस समय वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण बेंगलूर के कार प्रेमी भी नई-पुरानी कारों से अपनी दूरी बनाए हुए हैं, दूसरे नैनो के बाजार में आने से उनके लिए मामला अधिक गंभीर हो जाएगा। पहले बेंगलूर में सेकंड हैंड कारों की मांग भी इतनी अधिक होती थी कि इस बाजार में आने वाले सेकंड हैंड कारों के नए स्टॉक भी दो या तीन दिनों में बिक जाते थे। अब अगर नैनो के रूप में टाटा ब्रांड की चमचमाती नई कार लोगों को मिलने लगती है तो पुरानी कारों की तरफ कौन रुख करेगा?
इस आशंका के मद्देनजर कई सेकंड हैंड कार डीलर अपने स्टॉक को आनन-फानन में समाप्त करने की कोशिशों में जुट गए हैं। हालांकि नैनो कार की बिक्री औपचारिक रूप से शुरू कर दी गई है लेकिन सड़कों पर यह कार दिखने में अभी कुछ समय और लगेगा। इस समय का सदुपयोग करने के लिए कई डीलर अपने संभावित ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए कई विशेष पेशकश भी कर रहे हैं। इनमें खास रियायती कीमतों के साथ ही बिक्री के बाद सर्विसिंग की सुविधा तथा रियायती मूल्य पर कारों के पुर्जे उपलब्ध करवाने की पेशकश भी शामिल है। इनकी वजह से डीलरों के फायदे का आंकड़ा काफी कम हो गया है। उन्हें पुरानी कारों पर अधिक-से-अधिक 3 फीसदी का लाभ मिल पा रहा है। पहले लगभग 15 फीसदी के लाभ पर कारों की बिकवाली करने वाले डीलरों के लिए यह बड़ी समस्या है। इस स्थिति के लिए वे नैनो की लांचिंग को ही मुख्य कारण मानते हैं।
इस बारे में मिली एक दिलचस्प जानकारी के मुताबिक, इन दिनों बेंगलूर के सेकंड हैंड कार बाजार में पुरानी कारों की नीलामी का दौर अधिक चल रहा है। इसके लिए वैश्विक मंदी की चपेट में आए कार मालिकों की नौकरी छूटना या वेतन में कटौती मुख्य वजह माने जा रहे हैं। जिन कार मालिकों ने विभिन्न वित्तीय संस्थाओं से ऋण लेकर कार खरीदे थे, वे ब्याज या ईएमआई न दे पाने की स्थिति में अपनी कार जब्त करवा देने में ही अपनी भलाई मान रहे हैं। इस कारण से जब्त की गई कारों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। इन्हें सेकंड हैंड कार बाजार में लाकर नीलाम किया जा रहा है। इससे पुरानी कारों के बाजार पर नया दबाव भी बन रहा है।

मारुति के माथे पर भी पड़ा बल
कार बाजार के जानकारों का कहना है कि नैनो कार को बाजार में लांच किए जाने का असर सिर्फ सेकंड हैंड ही नहीं बल्कि मारुति 800 जैसी कारों पर भी पड़ने वाला है। यह बात मारुति उद्योग लिमिटेड के आधिकारिक सूत्र भी मानने लगे हैं। हाल में नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मारुति उद्योग लिमिटेड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्वीकार कर लिया कि भारत में कारों से होने वाले उत्सर्जन के नियमन के लिए "भारत स्टेज-3' (बीएस-3) मानदंडों को लागू किए जाने के बाद कंपनी को मारुति 800 में कई तकनीकी सुधार करने होंगे। इस सुधार के बाद मारुति 800 के पारंपरिक बाजार के लिए इस श्रृंखला की कारों की कीमतें आकर्षक नहीं रह जाएंगी। लोग महंगी मारुति खरीदने की बजाय टाटा की नैनो कार खरीदना अधिक पसंद करेंगे।

डीटीएच ऑपरेटर बीमा की बात करे तो चौंकने की जरूरत नहीं


बेंगलूर। डायरेक्ट टू होम (डीटीएच) टेलीविजन सेवा प्रदाता कंपनियों के कर्मचारियों को अब जल्दी ही एक नई भूमिका में देखा जाएगा। यह कर्मचारी अपनी कंपनी के ग्राहकों को बीमा योजनाएं भी बेचेंगे। यानी, अगर आपका केबल टीवी कंपनी का कर्मचारी आपकी टीवी सुधारने के लिए आए और आपको बीमा योजनाओं के बारे में भी बताने लगे तो हैरत में पड़ने की कोई जरूरत नहीं है।
जानकारी के मुताबिक, हाल के कुछ वर्षों में भारत के अधिकांश बैंकों ने अपनी अलग बीमा कंपनियां शुरू कर दी हैं। पहले यह बैंक बीमा कंपनियों के उत्पादों की बिक्री में खास भूमिका निभाया करते थे। बैंकों से पहले की तरह सहयोग नहीं मिलने के कारण बीमा कंपनियों ने अब ग्राहकों तक पहुंचने के लिए वैकल्पिक मार्गों की तलाश तेज कर दी है। इस सिलसिले में कुछ कंपनियों ने केबल ऑपरेटरों के ग्राहक वर्ग में अपनी पहुंच बनाने की कोशिश शुरू की है। निजी क्षेत्र की बीमा कंपनियों भारती एएक्सए तथा रिलायन्स लाइफ इन्श्योरेन्स कंपनियों ने अपनी डीटीएच इकाइयों के माध्यम से अपने बीमा उत्पादों की बिक्री की रणनीति बनाई है ताकि उन्हें एक पहले से बना-बनाया बाजार मिल जाए। इसी सोच के तहत भारती तथा रिलायन्स ने अपने मोबाइल फोन ग्राहकों को भी अपने बीमा उत्पादों के बारे में जानकारी देने की शुरुआत की थी। यह रणनीति काफी हद तक कामयाब भी बताई गई। इस कामयाबी के बाद अब दोनों कंपनियों ने डीटीएच ग्राहकों को अपने निशाने पर रखा है। यह वर्ग समाज के उच्चतर तबके का होने के कारण इसके पास काफी अतिरिक्त तरलता होती है जिसका निवेश करने के लिए बीमा योजनाएं एक बेहतर विकल्प हो सकती हैं।
उल्लेखनीय है कि इस समय जहां भारती एएक्सए अपने बीमा उत्पादों की बिक्री अपनी मोबाइल फोन भुजाएं एयरटेल तथा भारती टेलीटेक के माध्यम से कर रही है वहीं रिलायन्स लाइफ इन्श्योरेन्स कंपनी ने अपनी डीटीएच सेवा प्रदाता कंपनी बिग टीवी के माध्यम से अपनी बीमा योजनाओं की बिक्री करने की रणनीति अपनाई है। भारती एएक्सए के सूत्रों पर भरोसा करें तो बेंगलूर के ग्राहकों ने इसकी नई रणनीति को काफी पसंद किया है। शहर में स्थित इसके ग्राहक संबंध केन्द्रों पर प्रत्येक दिन बड़ी संख्या में बीमा उत्पादों के बारे में पूछताछ करने वाले लोग आते रहते हैं।

बुद्धिमतापूर्ण संवेदनशीलता का महत्व


बेंगलूर। बुद्धिमत्तापूर्ण संवेदनशीलता या संवेदनशीलता अनुपात (इमोशनल कोशिएंट/ईक्यू) हाल के वर्षों में व्यावसायिक सफलता का एक बड़ा कारक बन गया है। यह अवधारणा व्यवसाय प्रबंधकों की इस क्षमता को तौलने के लिए विकसित की गई है कि वे अपनी संवेदनाओं को कितना समझ पाते हैं तथा अपने साथ काम करने वालों की भावनाओं का ख्याल रखने में वे कितने सफल होते हैं। व्यावसायिक सफलता प्रबंधकों की इस क्षमता पर काफी हर तक निर्भर करती है। शोधकार्यों से पता चला है कि बुद्धिमत्तापूर्ण संवेदनशीलता लोगों के निजी और पेशेवर जीवन में 80 फीसदी सफलता दिला सकती है।
जहॉं बुद्धिमत्ता अनुपात (आईक्यू) का संबंध दिमाग से होता है वहीं ईक्यू का संबंध दिल होता है। इसका यह अर्थ नहीं कि यहॉं दिमाग पर दिल की जीत की बात की जा रही है बल्कि इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि अपने आस-पास के लोगों के साथ सहानुभूति रखना और उनके दिल जीतना पेशेवर जीवन में सफल होने के लिए भी जरूरी है। लोगों के दिलों पर जगह बनाकर ही उनके दिमागों तक पहुंचा जा सकता है। एक वैज्ञानिक अध्ययन में पाया गया है कि भावनात्मक जागरूकता और संवेदनाओं का बेहतर प्रयोग करने की क्षमता से जीवन में खुशियां और सफलताएं हासिल की जा सकती हैं।
बुद्धिमत्तापूर्ण संवेदनशीलता (ईआई) को साधारण शब्दों में इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है, "निजी भावनाआएं के साथ ही दूसरों की या किसी समूह की भावनाओं को समझने, उनका आंकलन और प्रबंधन करने तथा जीवन या व्यवसाय से जुड़ी मांग व दबाव से निपटने की योग्यता और क्षमता को बुद्धिमत्तापूर्ण संवेदनशीलता कहा जाता है।' ईआई को एक व्यापक स्वरूप में देखने के लिए किसी व्यक्ति में एक समूह के विभिन्न लोगों के साथ बेहतर संबंध विकसित करने की क्षमता सबसे महत्त्वपूर्ण कारक होता है। मशहूर मनोवैज्ञानिक डैनियल गोलमैन के मुताबिक, बुद्धिमत्तापूर्ण संवेदनशीलता के चार प्रमुख कारक इस प्रकार हैंः
* आत्म जागरूकता ः कोई निर्णय लेते समय निजी भावनओं को समझने और महत्त्वपूर्ण निर्णयों पर उनके प्रभाव का आंकलन करने की क्षमता।
* आत्म प्रबंधन ः किसी निर्णय का दिशा-निर्देशन करते समय निजी भावनाओं पर नियंत्रण पाने और परिस्थितियों के साथ ढलने की क्षमता।
* सामाजिक जागरूकता ः दूसरों की भावनाओं को समझकर प्रतिक्रिया व्यक्त करने और सामाजिक ताने-बाने को समझने की क्षमता।
* संबंधों का प्रबंधन ः आपसी टकराव का प्रबंधन करते हुए दूसरों को प्रेरित, प्रभावित और विकसित करने की क्षमता।
नेतृत्वशक्ति की मुख्य दक्षताओं में बुद्धिमत्तापूर्ण संवेदनशीलता को पहले स्थान पर रखा जा सकता है। किसी भी क्षेत्र का नेतृत्व करने वालों में यह क्षमता होनी ही चाहिए कि वे अपने साथ या आस-पास के लोगों को प्रेरित व प्रोत्साहित कर सकें। यदि वे अपनी भावनाओं के बारे में ही जागरूक नहीं होंगे, अपने साथ के लोगों या आस-पास के वातावरण को नहीं समझ पाएंगे तो कहा जाएगा कि उनका संवेदनशीलता अनुपात (ईक्यू) कम है। इस हालत में वे न तो दूसरों को प्रेरित नहीं कर सकते हैंऔर न ही समाज का नेतृत्व। आधुनिक औद्योगिक इकाइयों में ऐसे कार्यक्षेत्र विकसित किए जाते हैं, जिनमें कर्मचारियों के बीच मुक्त विचार-विमर्श और ज्ञान का आदान-प्रदान हो सके, लोगों को एक समूह के रूप में काम करने की प्रेरणा मिल सके और कर्मचारियों तथा उनके वरिष्ठ अधिकारियों के बीच द्विपक्षीय सम्मान का भाव विकसित हो सके। इन हालात में बेहतर ईआई वाले प्रबंधक अपनी टीम को बेहतर समझ सकते हैं और टीम के प्रत्येक सदस्य की अपनी-अपनी क्षमताओं का पूरा प्रयोग भी कर सकते हैं।
इस विषय में फेडरेशन ऑफ कर्नाटक चेंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (एफकेसीसीआई) के उपाध्यक्ष एनएस श्रीनिवासमूर्ति कहते हैं, "विभिन्न औद्योगिक इकाइयों में ईआई का बेहतर प्रयोग एक स्वागत योग्य कदम है। इससे प्रबंधन विज्ञान के विभिन्न आयामों को बेहतर रूप से समझना और उपयोग में लाना आसान हो जाता है। इसके लिए ईक्यू का आंकलन करने की विस्तृत प्रक्रिया को जानना-समझना महत्त्वपूर्ण कदम है। यह जानना भी जरूरी है कि कोई व्यक्ति किस तरह से अपना ईक्यू बढ़ा सकता है।'
कॉर्पोरेट घरानों द्वारा अपने शीर्ष प्रबंधकों की ईआई या ईक्यू में बेहतरी करने के लिए की गई पहल के अच्छे नतीजे आए हैं। इनसे जहां उनकी उत्पादकता में अभिवृद्धि हुई है वहीं उनका नजरिया पहले से अधिक सकारात्मक भी हुआ है। कंपनियों के उत्पाद तथा सेवाओं की बिक्री बढ़ाने, कर्मचारियों को प्रसन्न रखने तथा ग्राहकों को संतोष देने में भी ईआई से संबंधित पहल काफी कारगर रहे हैं। आज वैश्विक मंदी के इस दौर में भी इस प्रकार के पहल संदर्भहीन नहीं हुए हैं। प्रो. चंद्रकला वी कहती हैं, "बुद्धिमत्तापूर्ण संवेदनशीलता का महत्व आने वाले समय में लगातार बढ़ता जाएगा तथा भविष्य में यह आज से अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाने लगेगा। युवा पेशेवर कामगारों के लिए यह जरूरी है कि वे अपने शैक्षणिक दिनों से ही इस संबंध में खुद को जागरूक बनाना शुरू कर दें। इससे वे किसी भी हालत में खुद को ढालने में सक्षम हो जाते हैं।'