Saturday, April 4, 2009

समस्याओं की जड़ तक पहुँचना ज़रूरी


"चीजें हमेशा वैसी नहीं होतीं जैसी वे दिखती हैं।'
प्रत्येक संगठन के सामने अपनी तरह की खास समस्याएं होती हैं जिनसे उनके कारोबारी संचालन पर असर पड़ने के साथ ही उनके लाभ में कमी लाती हैं और जिनके कारण ग्राहकों के असंतोष से भी संगठन को दो-चार होना पड़ता है। अधिकांश व्यावसायिक संगठनों की कोशिश यह होती है कि इन समस्याओं का त्वरित व तात्कालिक समाधान ढूंढा जाए। इस कोशिश में वे समस्या के मूल कारणतक नहीं पहुंच पाते हैं। स्वाभाविक है कि ऐसे संगठनों के सामने समस्याएं बार-बार खड़ी होती रहती हैं। पिछले कुछ वर्षों में कई ऐसे गुणवत्ता नियंत्रण (क्वालिटी कंट्रोल/क्यूए) एवं कारोबारी विकास कार्यक्रम सामने आए हैं जो समस्याओं के मूल कारण को पहचानने पर केन्द्रित हैं। इनके तहत अधिक ध्यान इस बात पर दिया जाता है कि संगठन के काम-काज के दौरान उत्पन्न होने वाली कमियों और गलतियों को न्यूनतम स्तर पर लाया जाए। इसके लिए स्वाभाविक तौर पर ऋुटिविहीन प्रक्रियाओं को अपनाकर बेहतरीन प्रदर्शन करने पर जोर दिया जाता है। ऐसे कार्यक्रमों में जीरो डिफेक्ट्‌स, क्वालिटी सर्कल्स, सिक्स सिग्मा और टीक्यूएम जैसे कार्यक्रमों को गिना जा सकता है जो व्यावसायिक संगठनों में काफी लोकप्रिय हो चुके हैं। इन सभी कार्यक्रमों का मूल सिद्धांत काफी मिलता-जुलता है। इसे यूं समझा जा सकता है कि "प्रत्येक काम पहली ही बार बिल्कुल सटीक ढंग से किया जाए।' इस औजार को कई संगठनों ने व्यापार संचालन एवं उत्पादन संबंधी सभी समस्याओं के समाधान के लिए अपनाया है। अगर अपने उत्पाद में कोई व्यापारी किसी प्रकार का मूल्य संवर्द्धन नहीं भी करता है तो भी यह सिद्धांत उसके लिए काफी कारगर हो सकता है।
इस तकनीक के साथ ही समस्याओं के मूल कारण का विश्लेषण (रूट कॉज एनालिसिस) भी समस्याओं से निपटने में कारगर साबित हो सकता है। इससे विभिन्न संगठनों को अपने कार्य संचालन की राह में आने वाली बाधाएं दूर करने और प्रक्रियात्मक बेहतरी में मदद मिलती है। साथ ही उन क्षेत्रों की पहचान भी की जा सकती है जिनमें संचालनात्मक या प्रक्रियात्मक संशोधन से सर्वाधिक लाभ मिल सके। रूट कॉज एनालिसिस उन कारणों को जड़ से समाप्त करने में मदद देता है जिनके चलते समस्याएं बार-बार उभरकर सामने आती हैं। यह तभी संभव है जब किसी समस्या का मूल कारण समझ लिया जाए। इस सिद्धांत के नाम से ही स्पष्ट है कि मूल कारण को समझ कर ही समस्या को पूरी तरह से समझा और उसका निपटारा किया जा सकता है।
वास्तव में रूट-कॉज एनालिसिस की प्रक्रिया किसी भी समस्या के बारे में पूंछे जाने वाले तीन मुख्य प्रश्नों के उत्तर ढूंढती है कि समस्या क्या है, यह कैसे उत्पन्न हुई और क्यों उत्पन्न हुई। यह समस्याओं के समाधान का सबसे प्रभावी तरीका है क्योंकि इसके तहत अपनाई जानेवाली समाधान प्रक्रिया किसी भी प्रकार की समस्या के निपटारे का सबसे आसान और स्वाभाविक प्रक्रिया है। अगर समस्या का विश्लेषण प्रभावी ढंग से किया जा सके तो इससे उच् च गुणवत्तायुक्त प्रक्रियात्मक बेहतरी का औजार भी हाथ लग सकती है। इसकी मुख्य विशेषता यह है कि इससे समस्या उत्पन्न होने का मूल कारण समझा जा सकता है। इससे संगठन के उन लोगों को आसानी होती है जो समस्या निपटाने की जिम्मेदारी निभाते हैं। उन्हें यह समझ में आता है कि कोई प्रक्रिया क्यों असफल हो गई और इस प्रकार की असफलता से निपटने के लिए क्या उपाय कारगर रहेंगे ताकि भविष्य में ऐसी समस्याओं से बचा जा सके।
इस तरह, संगठनों को समस्याओं का प्रभावी निपटारा सुनिश्चित करना हो तो समस्याओं के मूल कारणों के विश्लेषण करने के साथ ही उन कारणों का दूर करना होता है। इसके लिए उन्हें निम्नलिखित चार चरणों से होकर गुजरना पड़ता है जो इस प्रकार हैं
1.समस्या से संबंधित सभी आंकड़े जुटाना
2. आंकड़ों का विश्लेषण करना
3. मूल कारण की पहचान करना और
4. समस्या को हल करने का तरीका तलाशकर उसे क्रियान्वित करना।
अक्सर हम किसी समस्या के आभासी कारण को ही उसका मूल कारण मान लेते हैं। समस्याओं के आभासी कारण वस्तुत: समस्या के स्पष्ट या तात्कालिक कारण होते हैं। कई बार ऐसा होता है कि आभासी कारण को ही हम समस्या का मूल कारण मान लेते हैं जबकि समस्या की जड़ कहीं और छिपी होती है।
कारोबारी संदर्भ में समस्याओं के मूल कारणों के विश्लेषण को "व्यावसायिक संचालन तथा प्रक्रिया में खामी वाले क्षेत्रों की पहचान' के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। प्रायोगिक नजरियों से भी देखें तो यह एक ऐसा औजार है जो हमारे आम जीवन में विभिन्न लोगों या परिस्थितियों को समझने में काफी मदद देता है।

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