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Tuesday, April 7, 2009

बंगारप्पा चुनाव आयोग की शरण में


बेंगलूर।
राज्य के प्रतिष्ठित शिमोगा संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के प्रत्याशी और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एस बंगारप्पा ने चुनाव आयोग में मुख्यमंत्री बीएस येड्डीयुरप्पा के विरुद्ध शिकायत दर्ज कराई है। सोमवार को यहां एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए बंगारप्पा ने कहा कि मुख्यमंत्री लगातार आचार संहिता और जनप्रतिनिधि कानून का उल्लंघन कर रहे हैं। उनके विरुद्ध आयोग को तत्काल कार्रवाई करते हुए स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की प्रक्रिया सुनिश्चित करनी चाहिए।

उन्होंने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री अपने गृह जिले में लगातार चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन कर रहे हैं और आचार संहिता के प्रभावकारी क्रियान्वयन में अधिकारी विफल साबित हो रहे हैं। शिमोगा क्षेत्र में अवैद शराब, नकद राशि और अन्य सामग्री के परिवहन पर आयोग द्वारा रोक लगाए जाने की मांग करते हुए बंगारप्पा ने आशंका जताई कि इस स्थिति में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सम्पन्न करा पाना काफी मुश्किल है।
अपनी शिकायत में बंगारप्पा ने येड्डीयुरप्पा पर कई आरोप लगाए हैं, जिनमें शिमोगा में विभिन्न संगठनों और समुदायों के नेताओं की बैठक में येड्डीयुरप्पा द्वारा अपने पुत्र के लिए वोट मांगने के लिए पद का दुरुपयोग करने का आरोप भी शामिल है। शिमोगा क्षेत्र में बंगारप्पा का मुकाबला मुख्यमंत्री के पुत्र और भाजपा प्रत्याशी बीवाई राघवेन्द्र से है। बंगारप्पा ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार के एक मंत्री ने शिमोगा के एक मंदिर में एक जाति विशेष के सदस्यों की बैठक में भाजपा प्रत्याशी के समर्थन के बदले मंदिर को दस लाख रुपए दान में दिए हैं। इस संबंध में भी एक शिकायत चुनाव आयोग में दर्ज की गई है। बंगारप्पा ने जिला प्रशासन के कुछ अधिकारियों की कार्य प्रणाली पर भी अंगुली उठाई है। उन्होंने आरोप लगाया है कि कुछ अधिकारी, स्कूल-कॉलेजों और मुजरई मंदिरों में प्रचार बैठकों का आयोजन कर रहे हैं।
एक सवाल के जवाब में बंगारप्पा ने कहा कि उनके साथी कागोडू तिम्मप्पा ने हिन्दूवादी संगठनों के विरुद्ध कोई भड़काऊ भाषण नहीं दिया। उनका कहना था कि मीडिया एक हिस्से ने तिम्मप्पा के भाषण को गलत संदर्भ में पेश किया है।

Saturday, April 4, 2009

चिड़ियाघर में पर्यटकों का रिकॉर्ड

मैसूर। शहर में मैसूर चिड़ियाघर के नाम से विख्यात श्रीचामराजेन्द्र जूलॉजिकल गार्डन ने वर्ष 2008-09 के दौरान एक और बड़ी उपलब्धि हासिल की है। इस वर्ष यहां रिकॉर्ड संख्या में पयर्टक आए हैं।
चिड़ियाघर के कार्यकारी निदेशक विजय राजन सिंह ने शुक्रवार को पत्रकारों को बताया कि वैश्विक आर्थिक मंदी के दौर में मैसूर चिड़ियाघर ने बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित किया है। मार्च के अंत तक यहां लगभग 21 लाख 40 हजार से अधिक पर्यटक आ चुके थे। इनमें चार लाख से अधिक स्कूली विद्यार्थी भी शामिल हैं। इसके साथ ही चिड़ियाघर ने राजस्व संग्रहण में भी नया रिकॉर्ड स्थापित किया है। पिछले वित्तीय वर्ष में चिड़ियाघर ने पांच करोड़ आठ लाख रुपए राजस्व के रूप में एकत्रित किए थे, जो इस वर्ष बढ़कर छह करोड़ 54 लाख रुपए तक पहुंच गए।
उन्होंने कहा कि महलों का शहर मैसूर दक्षिण भारत का एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन गया है और अब वह पर्यटकों की प्राथमिकता सूची में वह काफी ऊपर रहता है। चिड़ियाघर की योजना इसके सम्पूर्ण विकास के लिए एक व्यापक परियोजना तैयार करने की है, जिसमें यहां के पशु-पक्षियों और जीव-जन्तुओं का बेहतर ढंग से संक्षरण किया जा सकेगा। साथ ही, यहां बुनियादी सुविधाओं का समुचित प्रबंध किया जा सकेगा। यहां दुलर्भ प्रजाति के जीव-जन्तुओं के प्रजनन की सुविधा भी विकसित की जाएगी। सिंह ने चिड़ियाघर द्वारा यहां के पशु-पक्षियों को गोद देने की योजना में भी नया रिकॉर्ड बनाया है। वर्ष 2008-09 के दौरान चिड़ियाघर के 194 पशु-पक्षी विभिन्न संस्थाओं और नागरिकों ने गोद लिए हैं। इनमें बहुत बड़ी संख्या हाथियों और शेरों की है। गोद लेने की इस योजना के अंतर्गत 32 लाख 68 हजार 689 रुपए की राशि एकत्रित की गई है। उन्होंने कहा कि आमतौर पर पशुओं को गोद लेने का चलन पश्चिमी देशों में रहा है लेकिन आजकल भारत में भी इस नए चलन को अच्छा समर्थन मिल रहा है।
देश में पशु-पक्षियों को गोद लेने की योजना वर्ष 1984 में प्रारम्भ की गई थी लेकिन उस समय इस योजना को उचित समर्थन नहीं मिल पाया और वह बंद हो गई। बाद में वर्ष 2001 में इसकी पुनः शुरुआत की गई। मैसूर चिड़ियाघर देश के गिने-चुने सफलतम चिड़ियाघरों में से एक है और यहां गोद लेने वाली योजना को बहुत अधिक समर्थन मिला है। यह देश के सबसे पुराने चिड़ियाघरों में से भी एक है और अन्य चिड़ियाघरों के लिए एक आदर्श है।

समस्याओं की जड़ तक पहुँचना ज़रूरी


"चीजें हमेशा वैसी नहीं होतीं जैसी वे दिखती हैं।'
प्रत्येक संगठन के सामने अपनी तरह की खास समस्याएं होती हैं जिनसे उनके कारोबारी संचालन पर असर पड़ने के साथ ही उनके लाभ में कमी लाती हैं और जिनके कारण ग्राहकों के असंतोष से भी संगठन को दो-चार होना पड़ता है। अधिकांश व्यावसायिक संगठनों की कोशिश यह होती है कि इन समस्याओं का त्वरित व तात्कालिक समाधान ढूंढा जाए। इस कोशिश में वे समस्या के मूल कारणतक नहीं पहुंच पाते हैं। स्वाभाविक है कि ऐसे संगठनों के सामने समस्याएं बार-बार खड़ी होती रहती हैं। पिछले कुछ वर्षों में कई ऐसे गुणवत्ता नियंत्रण (क्वालिटी कंट्रोल/क्यूए) एवं कारोबारी विकास कार्यक्रम सामने आए हैं जो समस्याओं के मूल कारण को पहचानने पर केन्द्रित हैं। इनके तहत अधिक ध्यान इस बात पर दिया जाता है कि संगठन के काम-काज के दौरान उत्पन्न होने वाली कमियों और गलतियों को न्यूनतम स्तर पर लाया जाए। इसके लिए स्वाभाविक तौर पर ऋुटिविहीन प्रक्रियाओं को अपनाकर बेहतरीन प्रदर्शन करने पर जोर दिया जाता है। ऐसे कार्यक्रमों में जीरो डिफेक्ट्‌स, क्वालिटी सर्कल्स, सिक्स सिग्मा और टीक्यूएम जैसे कार्यक्रमों को गिना जा सकता है जो व्यावसायिक संगठनों में काफी लोकप्रिय हो चुके हैं। इन सभी कार्यक्रमों का मूल सिद्धांत काफी मिलता-जुलता है। इसे यूं समझा जा सकता है कि "प्रत्येक काम पहली ही बार बिल्कुल सटीक ढंग से किया जाए।' इस औजार को कई संगठनों ने व्यापार संचालन एवं उत्पादन संबंधी सभी समस्याओं के समाधान के लिए अपनाया है। अगर अपने उत्पाद में कोई व्यापारी किसी प्रकार का मूल्य संवर्द्धन नहीं भी करता है तो भी यह सिद्धांत उसके लिए काफी कारगर हो सकता है।
इस तकनीक के साथ ही समस्याओं के मूल कारण का विश्लेषण (रूट कॉज एनालिसिस) भी समस्याओं से निपटने में कारगर साबित हो सकता है। इससे विभिन्न संगठनों को अपने कार्य संचालन की राह में आने वाली बाधाएं दूर करने और प्रक्रियात्मक बेहतरी में मदद मिलती है। साथ ही उन क्षेत्रों की पहचान भी की जा सकती है जिनमें संचालनात्मक या प्रक्रियात्मक संशोधन से सर्वाधिक लाभ मिल सके। रूट कॉज एनालिसिस उन कारणों को जड़ से समाप्त करने में मदद देता है जिनके चलते समस्याएं बार-बार उभरकर सामने आती हैं। यह तभी संभव है जब किसी समस्या का मूल कारण समझ लिया जाए। इस सिद्धांत के नाम से ही स्पष्ट है कि मूल कारण को समझ कर ही समस्या को पूरी तरह से समझा और उसका निपटारा किया जा सकता है।
वास्तव में रूट-कॉज एनालिसिस की प्रक्रिया किसी भी समस्या के बारे में पूंछे जाने वाले तीन मुख्य प्रश्नों के उत्तर ढूंढती है कि समस्या क्या है, यह कैसे उत्पन्न हुई और क्यों उत्पन्न हुई। यह समस्याओं के समाधान का सबसे प्रभावी तरीका है क्योंकि इसके तहत अपनाई जानेवाली समाधान प्रक्रिया किसी भी प्रकार की समस्या के निपटारे का सबसे आसान और स्वाभाविक प्रक्रिया है। अगर समस्या का विश्लेषण प्रभावी ढंग से किया जा सके तो इससे उच् च गुणवत्तायुक्त प्रक्रियात्मक बेहतरी का औजार भी हाथ लग सकती है। इसकी मुख्य विशेषता यह है कि इससे समस्या उत्पन्न होने का मूल कारण समझा जा सकता है। इससे संगठन के उन लोगों को आसानी होती है जो समस्या निपटाने की जिम्मेदारी निभाते हैं। उन्हें यह समझ में आता है कि कोई प्रक्रिया क्यों असफल हो गई और इस प्रकार की असफलता से निपटने के लिए क्या उपाय कारगर रहेंगे ताकि भविष्य में ऐसी समस्याओं से बचा जा सके।
इस तरह, संगठनों को समस्याओं का प्रभावी निपटारा सुनिश्चित करना हो तो समस्याओं के मूल कारणों के विश्लेषण करने के साथ ही उन कारणों का दूर करना होता है। इसके लिए उन्हें निम्नलिखित चार चरणों से होकर गुजरना पड़ता है जो इस प्रकार हैं
1.समस्या से संबंधित सभी आंकड़े जुटाना
2. आंकड़ों का विश्लेषण करना
3. मूल कारण की पहचान करना और
4. समस्या को हल करने का तरीका तलाशकर उसे क्रियान्वित करना।
अक्सर हम किसी समस्या के आभासी कारण को ही उसका मूल कारण मान लेते हैं। समस्याओं के आभासी कारण वस्तुत: समस्या के स्पष्ट या तात्कालिक कारण होते हैं। कई बार ऐसा होता है कि आभासी कारण को ही हम समस्या का मूल कारण मान लेते हैं जबकि समस्या की जड़ कहीं और छिपी होती है।
कारोबारी संदर्भ में समस्याओं के मूल कारणों के विश्लेषण को "व्यावसायिक संचालन तथा प्रक्रिया में खामी वाले क्षेत्रों की पहचान' के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। प्रायोगिक नजरियों से भी देखें तो यह एक ऐसा औजार है जो हमारे आम जीवन में विभिन्न लोगों या परिस्थितियों को समझने में काफी मदद देता है।

बलारी में जद-एस का प्रत्याशी नहीं

कार्यालय संवाददाता
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बेंगलूर। राज्य में लोकसभा चुनावों के अंतर्गत जनता दल (एस) बल्लारी संसदीय क्षेत्र में अपना प्रत्याशी नहीं उतारेगा। दल को लगता है कि बल्लारी में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की आर्थिक सुदृढ़ता का उसका प्रत्याशी मुकाबला नहीं कर सकता है, इसलिए दल ने यह फैसला किया है। यह जानकारी शुक्रवार को जद (एस) के प्रदेशाध्यक्ष एचडी कुमारस्वामी ने दी।
यहां पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहां कि बल्लारी जिले का वातावरण विपक्षी दलों के लिए ठीक नहीं है। वहां संविधान के अनुसार मतदाताओं को चुनाव के प्रेरित करने का प्रयास नहीं किया जाता और वहां का माहौल अलोकतांत्रिक पद्धति जैसा हो गया है। बल्लारी जिले के भाजपा नेताओं पर अपने प्रत्याशी की जीत के लिए अपनी सत्ता और धन का बेजा इस्तेमाल करने का आरोप लगाते हुए पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि जद (एस) ने फैसला किया है कि बल्लारी में दल को कोई प्रत्याशी चुनाव नहीं लड़ेगा। चुनाव आयोग के आंकड़ों का हवाला देते हुए कुमारस्वामी ने कहा कि चुनाव आचार संहिता उल्लंघन के मामले में बल्लारी क्षेत्र सबसे ऊपर है। वहां राज्य के अन्य क्षेत्रों के साथ अन्य राज्यों के मुकाबले भी आचार संहिता का उल्लंघन, अवैध शराब, धन, सामग्री की बरामगदी और चुनाव संबंधी हिंसा की वारदातों में बेतहाशा वृद्धि हुई है.
बल्लारी जिले के खदान क्षेत्रों का दौरा किए जाने के बारे में पूछे जाने पर कुमारस्वामी ने कहा कि वह सिर्फ इस बात की सच्चाई पता लगाने वहां गए थे कि बल्लारी में भाजपा नेताओं द्वारा एक बहुत बड़े स्तर पर अवैध खनन गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा है। इन अवैध गतिविधियों को रोकने के लिए चुनाव आयोग से हस्तक्षेप की मांग करते हुए कुमारस्वामी ने कहा कि चुनाव के दौरान इस अवैध खनन की साजिश को सफल होने से रोका जा सकता है। उन्होंने दावा किया कि अवैध खनन गतिविधियों से प्राप्त राशि का उपयोग ही चुनाव में किया जा रहा है।
बेंगलूर दक्षिण क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी अनंतकुमार द्वारा शुरू की गई रंग यात्रा पर कड़ी आपत्ति उठाते हुए उन्होंने कहा कि इसमें भगवान गणेश की प्रतिमा का उपयोग करना चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन है। इस संबंध में वह दल की तरफ से जल्द ही एक शिकायत भाजपा प्रत्याशी के विरुद्ध आयोग से करेंगे।

Wednesday, April 1, 2009

बेंगलूर का सेकंड हैंड कार बाजार टाटा "नैनो' से आशंकित


बेंगलूूर। अपने वादे के अनुरूप भारत की सबसे बड़ी वाहन निर्माता कंपनी टाटा मोटर्स ने भले ही दुनिया की सबसे सस्ती लखटकिया कार "नैनो' भारतीय बाजार में उपलब्ध करवा दी है लेकिन इस कार के बारे में शहर में कोई खास चर्चा सुनने को नहीं मिल रही है। यहां के कार प्रेमियों की जमात सिर्फ कीमत के आधार पर किसी कार के बारे में अपना मत बनाने को तैयार नहीं हैं। यहां की सड़कों पर अन्तरराष्ट्रीय रूप से मशहूर तथा करोड़ों रुपयों की कीमत वाली विलासितापूर्ण कार मॉडलों को इठलाते हुए चलते देखा जाता है। इस बाजार में सिर्फ सस्ता होना किसी कार का आकर्षण नहीं माना जाता है। बहरहाल, बेंगलूर में एक विशेष कार बाजार नैनो लांच होने के बाद लगातार चिन्ताएं जता रहा है। यह सेकंड हैंड कारों का बाजार है। इस बाजार को टाटा की सस्ती कार से अपने धंधे में प्रतियोगिता बढ़ जाने की आशंका दिखने लगी है। नैनो को बाजार में लांच करने के लिए जो समय चुना गया है उससे सेकंड हैंड कार बाजार की चिन्ताएं अधिक बढ़ गई हैं।
कुछ सेकंड हैंड कार डीलरों का कहना है कि एक तो इस समय वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण बेंगलूर के कार प्रेमी भी नई-पुरानी कारों से अपनी दूरी बनाए हुए हैं, दूसरे नैनो के बाजार में आने से उनके लिए मामला अधिक गंभीर हो जाएगा। पहले बेंगलूर में सेकंड हैंड कारों की मांग भी इतनी अधिक होती थी कि इस बाजार में आने वाले सेकंड हैंड कारों के नए स्टॉक भी दो या तीन दिनों में बिक जाते थे। अब अगर नैनो के रूप में टाटा ब्रांड की चमचमाती नई कार लोगों को मिलने लगती है तो पुरानी कारों की तरफ कौन रुख करेगा?
इस आशंका के मद्देनजर कई सेकंड हैंड कार डीलर अपने स्टॉक को आनन-फानन में समाप्त करने की कोशिशों में जुट गए हैं। हालांकि नैनो कार की बिक्री औपचारिक रूप से शुरू कर दी गई है लेकिन सड़कों पर यह कार दिखने में अभी कुछ समय और लगेगा। इस समय का सदुपयोग करने के लिए कई डीलर अपने संभावित ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए कई विशेष पेशकश भी कर रहे हैं। इनमें खास रियायती कीमतों के साथ ही बिक्री के बाद सर्विसिंग की सुविधा तथा रियायती मूल्य पर कारों के पुर्जे उपलब्ध करवाने की पेशकश भी शामिल है। इनकी वजह से डीलरों के फायदे का आंकड़ा काफी कम हो गया है। उन्हें पुरानी कारों पर अधिक-से-अधिक 3 फीसदी का लाभ मिल पा रहा है। पहले लगभग 15 फीसदी के लाभ पर कारों की बिकवाली करने वाले डीलरों के लिए यह बड़ी समस्या है। इस स्थिति के लिए वे नैनो की लांचिंग को ही मुख्य कारण मानते हैं।
इस बारे में मिली एक दिलचस्प जानकारी के मुताबिक, इन दिनों बेंगलूर के सेकंड हैंड कार बाजार में पुरानी कारों की नीलामी का दौर अधिक चल रहा है। इसके लिए वैश्विक मंदी की चपेट में आए कार मालिकों की नौकरी छूटना या वेतन में कटौती मुख्य वजह माने जा रहे हैं। जिन कार मालिकों ने विभिन्न वित्तीय संस्थाओं से ऋण लेकर कार खरीदे थे, वे ब्याज या ईएमआई न दे पाने की स्थिति में अपनी कार जब्त करवा देने में ही अपनी भलाई मान रहे हैं। इस कारण से जब्त की गई कारों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। इन्हें सेकंड हैंड कार बाजार में लाकर नीलाम किया जा रहा है। इससे पुरानी कारों के बाजार पर नया दबाव भी बन रहा है।

मारुति के माथे पर भी पड़ा बल
कार बाजार के जानकारों का कहना है कि नैनो कार को बाजार में लांच किए जाने का असर सिर्फ सेकंड हैंड ही नहीं बल्कि मारुति 800 जैसी कारों पर भी पड़ने वाला है। यह बात मारुति उद्योग लिमिटेड के आधिकारिक सूत्र भी मानने लगे हैं। हाल में नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मारुति उद्योग लिमिटेड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्वीकार कर लिया कि भारत में कारों से होने वाले उत्सर्जन के नियमन के लिए "भारत स्टेज-3' (बीएस-3) मानदंडों को लागू किए जाने के बाद कंपनी को मारुति 800 में कई तकनीकी सुधार करने होंगे। इस सुधार के बाद मारुति 800 के पारंपरिक बाजार के लिए इस श्रृंखला की कारों की कीमतें आकर्षक नहीं रह जाएंगी। लोग महंगी मारुति खरीदने की बजाय टाटा की नैनो कार खरीदना अधिक पसंद करेंगे।

डीटीएच ऑपरेटर बीमा की बात करे तो चौंकने की जरूरत नहीं


बेंगलूर। डायरेक्ट टू होम (डीटीएच) टेलीविजन सेवा प्रदाता कंपनियों के कर्मचारियों को अब जल्दी ही एक नई भूमिका में देखा जाएगा। यह कर्मचारी अपनी कंपनी के ग्राहकों को बीमा योजनाएं भी बेचेंगे। यानी, अगर आपका केबल टीवी कंपनी का कर्मचारी आपकी टीवी सुधारने के लिए आए और आपको बीमा योजनाओं के बारे में भी बताने लगे तो हैरत में पड़ने की कोई जरूरत नहीं है।
जानकारी के मुताबिक, हाल के कुछ वर्षों में भारत के अधिकांश बैंकों ने अपनी अलग बीमा कंपनियां शुरू कर दी हैं। पहले यह बैंक बीमा कंपनियों के उत्पादों की बिक्री में खास भूमिका निभाया करते थे। बैंकों से पहले की तरह सहयोग नहीं मिलने के कारण बीमा कंपनियों ने अब ग्राहकों तक पहुंचने के लिए वैकल्पिक मार्गों की तलाश तेज कर दी है। इस सिलसिले में कुछ कंपनियों ने केबल ऑपरेटरों के ग्राहक वर्ग में अपनी पहुंच बनाने की कोशिश शुरू की है। निजी क्षेत्र की बीमा कंपनियों भारती एएक्सए तथा रिलायन्स लाइफ इन्श्योरेन्स कंपनियों ने अपनी डीटीएच इकाइयों के माध्यम से अपने बीमा उत्पादों की बिक्री की रणनीति बनाई है ताकि उन्हें एक पहले से बना-बनाया बाजार मिल जाए। इसी सोच के तहत भारती तथा रिलायन्स ने अपने मोबाइल फोन ग्राहकों को भी अपने बीमा उत्पादों के बारे में जानकारी देने की शुरुआत की थी। यह रणनीति काफी हद तक कामयाब भी बताई गई। इस कामयाबी के बाद अब दोनों कंपनियों ने डीटीएच ग्राहकों को अपने निशाने पर रखा है। यह वर्ग समाज के उच्चतर तबके का होने के कारण इसके पास काफी अतिरिक्त तरलता होती है जिसका निवेश करने के लिए बीमा योजनाएं एक बेहतर विकल्प हो सकती हैं।
उल्लेखनीय है कि इस समय जहां भारती एएक्सए अपने बीमा उत्पादों की बिक्री अपनी मोबाइल फोन भुजाएं एयरटेल तथा भारती टेलीटेक के माध्यम से कर रही है वहीं रिलायन्स लाइफ इन्श्योरेन्स कंपनी ने अपनी डीटीएच सेवा प्रदाता कंपनी बिग टीवी के माध्यम से अपनी बीमा योजनाओं की बिक्री करने की रणनीति अपनाई है। भारती एएक्सए के सूत्रों पर भरोसा करें तो बेंगलूर के ग्राहकों ने इसकी नई रणनीति को काफी पसंद किया है। शहर में स्थित इसके ग्राहक संबंध केन्द्रों पर प्रत्येक दिन बड़ी संख्या में बीमा उत्पादों के बारे में पूछताछ करने वाले लोग आते रहते हैं।

बुद्धिमतापूर्ण संवेदनशीलता का महत्व


बेंगलूर। बुद्धिमत्तापूर्ण संवेदनशीलता या संवेदनशीलता अनुपात (इमोशनल कोशिएंट/ईक्यू) हाल के वर्षों में व्यावसायिक सफलता का एक बड़ा कारक बन गया है। यह अवधारणा व्यवसाय प्रबंधकों की इस क्षमता को तौलने के लिए विकसित की गई है कि वे अपनी संवेदनाओं को कितना समझ पाते हैं तथा अपने साथ काम करने वालों की भावनाओं का ख्याल रखने में वे कितने सफल होते हैं। व्यावसायिक सफलता प्रबंधकों की इस क्षमता पर काफी हर तक निर्भर करती है। शोधकार्यों से पता चला है कि बुद्धिमत्तापूर्ण संवेदनशीलता लोगों के निजी और पेशेवर जीवन में 80 फीसदी सफलता दिला सकती है।
जहॉं बुद्धिमत्ता अनुपात (आईक्यू) का संबंध दिमाग से होता है वहीं ईक्यू का संबंध दिल होता है। इसका यह अर्थ नहीं कि यहॉं दिमाग पर दिल की जीत की बात की जा रही है बल्कि इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि अपने आस-पास के लोगों के साथ सहानुभूति रखना और उनके दिल जीतना पेशेवर जीवन में सफल होने के लिए भी जरूरी है। लोगों के दिलों पर जगह बनाकर ही उनके दिमागों तक पहुंचा जा सकता है। एक वैज्ञानिक अध्ययन में पाया गया है कि भावनात्मक जागरूकता और संवेदनाओं का बेहतर प्रयोग करने की क्षमता से जीवन में खुशियां और सफलताएं हासिल की जा सकती हैं।
बुद्धिमत्तापूर्ण संवेदनशीलता (ईआई) को साधारण शब्दों में इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है, "निजी भावनाआएं के साथ ही दूसरों की या किसी समूह की भावनाओं को समझने, उनका आंकलन और प्रबंधन करने तथा जीवन या व्यवसाय से जुड़ी मांग व दबाव से निपटने की योग्यता और क्षमता को बुद्धिमत्तापूर्ण संवेदनशीलता कहा जाता है।' ईआई को एक व्यापक स्वरूप में देखने के लिए किसी व्यक्ति में एक समूह के विभिन्न लोगों के साथ बेहतर संबंध विकसित करने की क्षमता सबसे महत्त्वपूर्ण कारक होता है। मशहूर मनोवैज्ञानिक डैनियल गोलमैन के मुताबिक, बुद्धिमत्तापूर्ण संवेदनशीलता के चार प्रमुख कारक इस प्रकार हैंः
* आत्म जागरूकता ः कोई निर्णय लेते समय निजी भावनओं को समझने और महत्त्वपूर्ण निर्णयों पर उनके प्रभाव का आंकलन करने की क्षमता।
* आत्म प्रबंधन ः किसी निर्णय का दिशा-निर्देशन करते समय निजी भावनाओं पर नियंत्रण पाने और परिस्थितियों के साथ ढलने की क्षमता।
* सामाजिक जागरूकता ः दूसरों की भावनाओं को समझकर प्रतिक्रिया व्यक्त करने और सामाजिक ताने-बाने को समझने की क्षमता।
* संबंधों का प्रबंधन ः आपसी टकराव का प्रबंधन करते हुए दूसरों को प्रेरित, प्रभावित और विकसित करने की क्षमता।
नेतृत्वशक्ति की मुख्य दक्षताओं में बुद्धिमत्तापूर्ण संवेदनशीलता को पहले स्थान पर रखा जा सकता है। किसी भी क्षेत्र का नेतृत्व करने वालों में यह क्षमता होनी ही चाहिए कि वे अपने साथ या आस-पास के लोगों को प्रेरित व प्रोत्साहित कर सकें। यदि वे अपनी भावनाओं के बारे में ही जागरूक नहीं होंगे, अपने साथ के लोगों या आस-पास के वातावरण को नहीं समझ पाएंगे तो कहा जाएगा कि उनका संवेदनशीलता अनुपात (ईक्यू) कम है। इस हालत में वे न तो दूसरों को प्रेरित नहीं कर सकते हैंऔर न ही समाज का नेतृत्व। आधुनिक औद्योगिक इकाइयों में ऐसे कार्यक्षेत्र विकसित किए जाते हैं, जिनमें कर्मचारियों के बीच मुक्त विचार-विमर्श और ज्ञान का आदान-प्रदान हो सके, लोगों को एक समूह के रूप में काम करने की प्रेरणा मिल सके और कर्मचारियों तथा उनके वरिष्ठ अधिकारियों के बीच द्विपक्षीय सम्मान का भाव विकसित हो सके। इन हालात में बेहतर ईआई वाले प्रबंधक अपनी टीम को बेहतर समझ सकते हैं और टीम के प्रत्येक सदस्य की अपनी-अपनी क्षमताओं का पूरा प्रयोग भी कर सकते हैं।
इस विषय में फेडरेशन ऑफ कर्नाटक चेंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (एफकेसीसीआई) के उपाध्यक्ष एनएस श्रीनिवासमूर्ति कहते हैं, "विभिन्न औद्योगिक इकाइयों में ईआई का बेहतर प्रयोग एक स्वागत योग्य कदम है। इससे प्रबंधन विज्ञान के विभिन्न आयामों को बेहतर रूप से समझना और उपयोग में लाना आसान हो जाता है। इसके लिए ईक्यू का आंकलन करने की विस्तृत प्रक्रिया को जानना-समझना महत्त्वपूर्ण कदम है। यह जानना भी जरूरी है कि कोई व्यक्ति किस तरह से अपना ईक्यू बढ़ा सकता है।'
कॉर्पोरेट घरानों द्वारा अपने शीर्ष प्रबंधकों की ईआई या ईक्यू में बेहतरी करने के लिए की गई पहल के अच्छे नतीजे आए हैं। इनसे जहां उनकी उत्पादकता में अभिवृद्धि हुई है वहीं उनका नजरिया पहले से अधिक सकारात्मक भी हुआ है। कंपनियों के उत्पाद तथा सेवाओं की बिक्री बढ़ाने, कर्मचारियों को प्रसन्न रखने तथा ग्राहकों को संतोष देने में भी ईआई से संबंधित पहल काफी कारगर रहे हैं। आज वैश्विक मंदी के इस दौर में भी इस प्रकार के पहल संदर्भहीन नहीं हुए हैं। प्रो. चंद्रकला वी कहती हैं, "बुद्धिमत्तापूर्ण संवेदनशीलता का महत्व आने वाले समय में लगातार बढ़ता जाएगा तथा भविष्य में यह आज से अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाने लगेगा। युवा पेशेवर कामगारों के लिए यह जरूरी है कि वे अपने शैक्षणिक दिनों से ही इस संबंध में खुद को जागरूक बनाना शुरू कर दें। इससे वे किसी भी हालत में खुद को ढालने में सक्षम हो जाते हैं।'

"मैजेस्टिक" बस स्टैंड के सुधार का काम 9 से


बेंगलूर। सड़कों पर वाहनों के जमघट से उपजने वाली समस्या को इसकी जड़ में ही खत्म करने की कोशिशें अब तेजी पकड़ने वाली हैं। 9 अप्रैल को शहर के व्यस्ततम बस-अड्डों में से एक मैजेस्टिक बस स्टैंड के चेहरे में सुधार लाने का काम शुरू होगा। इस बस स्टैंड से अपनी यात्रा शुरू करने वाली सवारियों को यहां की व्यवस्थाओं से कई तरह की शिकायतें रहती आई हैं। इनमें मुख्य शिकायत यह रही है कि इस बस स्टैंड में उपलब्ध पूरे स्थान का समुचित प्रयोग न किए जाने से इसकी पूरी क्षमता के अनुसार यात्रियों को बसों की सेवा नहीं मिल पाती है। कुछ वर्ष पूर्व यह शिकायत दूर करने के लिए मैजेस्टिक को 45 मंजिले बस स्टैंड का स्वरूप देने का प्रस्ताव रखा गया था। जानकारी के मुताबिक, इस प्रस्ताव पर विचार-विमर्श करने के बाद अब इसे जमीनी स्तर पर लागू करने की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।
मैजेस्टिक बस स्टैंड को नया चेहरा देने की कोशिशों के तहत बस यात्रियों को कई प्रकार की यातायात सुविधाएं एकीकृत स्वरूप में उपलब्ध करवाने पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा। इस बस स्टैंड से यात्री बेंगलूर महानगर परिवहन निगम (बीएमटीसी) की बसों के साथ ही कर्नाटक राज्य परिवहन निगम (केएसआरटीसी) बसों की सेवा भी प्राप्त कर सकेंगे। इनके साथ ही मैजेस्टिक बस स्टैंड के भूतल से 60 फीट नीचे बेंगलूर मेट्रो रेल और मोनोरेल स्टेशन भी बनेंगे। यानी एक ही स्थान पर लोगों को शहरी और अन्तरशहरीय यातायात के सभी विकल्प उपलब्ध करवाने की योजना है। इन सबके साथ ही, सभी प्रस्तावित 45 मंजिलों का निर्माण कार्य पूरा हो जाने पर निजी वाहनों की पार्किंग के लिए भी पर्याप्त स्थान उपलब्ध हो जाएगा। योजना के मुताबिक, यात्रियों को छह मंजिलों पर केएसआरटीसी और छह मंजिलों पर बीएमटीसी की बस सेवाओं के साथ ही छह मंजिलों पर मेट्रो रेल की सेवाएं भी मिलेंगी। वहीं 18 मीटर का एक गलियारा ऐसा होगा जिसमें मेट्रो रेल और मोनो रेल का प्रयोग करने वाले यात्री सुविधानुसार मोनो या मेट्रो रेल की सेवाएं ले सकेंगे।
इस नई यातायात योजना के तहत बेंगलूर शहर के अन्दर ही कुछ नए बस-स्टॉप भी बनाए जाएंगे। यह सभी बस स्टॉप मैजेस्टिक बस स्टैंड के आस-पास होंगे। इनमें बेंगलूर सिटी रेलवे स्टेशन रोड, सिल्क हाउस रोड, शान्ताला रोड बस स्टॉप शामिल होंगे। इन नए बस स्टॉप पर बीएमटीसी की बसें रुकेंगी जबकि केएसआरटीसी की बसों के लिए दस नए बस स्टॉप बनेंगे।
मैजेस्टिक बस स्टैंड को शानदार नया चेहरा देने की इस महत्त्वाकांक्षी परियोजना पर अनुमानित 500 करोड़ रुपए की लागत आने की जानकारी मिली है। उम्मीद जताई जा रही है कि इस परियोजना का काम पूरा होने पर मैजेस्टिक बस स्टैंड शहर में सड़क एवं वैकल्पिक रेल यातायात व्यवस्था का मुख्य केन्द्र बन जाएगा। इस विशालकाय बस स्टैंड के वाणिज्यिक प्रयोग की योजना भी तैयार कर ली गई है। कुल मिलकर "मैजेस्टिक' अपने नाम के अनुरूप जल्दी ही एक शानदार चेहरे के साथ दैनिक यात्रियों की सेवा करने को तैयार हो जाएगा ताकि यात्रियों को सफर की शुरुआत से ही बेहतरीन सेवा दी जा सके।

मनोरंजन तथा विलासिता करों में कटौती लागू

* सिनेमाघरों के टिकट होंगे सस्ते तथा होटल-रेस्तरांओं की सेवाएं होंगी सस्ती
* मनोरंजन कर में 10 फीसदी तथा विलासिता कर में दो फीसदी की कटौती
* होटलों ने मंदी के मौसम में ग्राहकों को लुभाने की नई योजना तैयार की



बेंगलूर। वित्त वर्ष 2009-10 के लिए मुख्यमंत्री बीएस येड्डीयुरप्पा द्वारा घोषित बजट प्रस्तावों में मनोरंजन कर में कटौती का प्रावधान किया गया था। यह प्रावधान 1 अप्रैल, बुधवार से लागू हो गया है। पर्यटन एवं आतिथ्य क्षेत्रों से जुड़े होटलों तथा रेस्तरांओं को भी राज्य सरकार की तरफ से कुछ कर राहत दी गई है। आर्थिक मंदी के इस दौर में कोई सरकार इससे बेहतर तोहफा और क्या दे सकती थी? राज्य में मनोरंजन कर जहां पूर्व में 40 फीसदी की दर से वसूला जाता था वहीं अब यह 30 फीसदी की दर से वसूला जाएगा। यहां के सिनेमाघरों में आने वाले सिने-प्रेमियों की संख्या वैश्विक मंदी के कारण हाल के समय में काफी घट रही थी जिसके कारण सिनेमाघरों ने अपने टिकटों के मूल्य में पहले ही कटौती कर दी है। मनोरंजन कर की दरों में कटौती के कारण टिकटों का मूल्य आगे भी कम किए जाने की संभावना बनी है।
इसी तरह की छूट होटलों के कमरों की बुकिंग पर लिए जाने वाले विलासिता कर (लक्जरी टैक्स) के मामले में भी दी गई है। जहां पहले होटलों को 500 से 1000 रुपए किराए वाले कमरों की बुकिंग पर 6 फीसदी की दर से कर देना पड़ता था, वहीं अब इन कमरों की बुकिंग पर उन्हें मात्र 4 फीसदी की दर से कर देना होगा। 1000 रुपए से 2000 रुपए तथा 2000 रुपए से अधिक किराए वाले कमरों की बुकिंग पर भी क्रमश: 6 एवं 10 प्रतिशत की दर से कर वसूला जाएगा। उल्लेखनीय है कि पूर्व में 1000 रुपए से 2000 रुपए तथा 2000 रुपए से अधिक किराए वाले कमरों की बुकिंग पर होटलों से क्रमश: 8 एवं 12 फीसदी की दर से विलासिता कर वसूला जाता था।
शहर के होटलों तथा रेस्तरांओं ने इस कर कटौती का फायदा अपने ग्राहकों तक पहुंचाने के साथ ही उनके लिए मनोरंजन के खास प्रबंध करने की योजना भी बना ली है। इनमें आईपीएल ट्‌वेंटी-20 मैचों का सीधा प्रसारण मुख्य रूप से शामिल है। यहां के कई होटलों ने अपनी सेवाओं के मूल्य संवर्द्धन के लिए आईपीएल मैचों के दौरान नई रैक रेट (घोषित मूल्य) भी तय कर ली है। इनके ग्राहकों को इन होटलों में शीर्ष गुणवत्तापूर्ण सेवाएं पहले की अपेक्षा बेहतर तथा प्रतियोगी कीमतों पर मिलेंगी। इनके साथ कई क्लबों के नाम भी जुड़ गए हैं जो आईपीएल मैचों का अपने सदस्यों के लिए सीधा प्रसारण दिखाएंगे ताकि उनके सदस्य खेल का मजा मिल-जुलकर ले सकें।
जानकारी के मुताबिक, वैश्विक मंदी के बावजूद बेंगलूर के मनोरंजन तथा आतिथ्य व्यापार जगत में जो उत्साह पनपा है उसे अब कोई गुब्बारा नहीं माना जा सकता है। राज्य सरकार ने अपने बजटीय वादे पर खरे उतरते हुए इन कर कटौतियों के प्रस्तावों को एक शासकीय अधिसूचना जारी कर निर्धारित तिथि से ही जारी कर दिया है। स्टांप तथा पंजीयन विभाग ने भी अपनी तरफ से स्टांप शुल्क में कटौती कर व्यापार जगत का उत्साह बढ़ाया है।

Tuesday, March 31, 2009

मुम्बई हमले के मामले में पाक को ठोस परिणाम देना होगा : मनमोहन



प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आज कहा कि पाकिस्तान को मुम्बई आतंकवादी हमले के मामले में भारत द्वारा जो जांच रिपोर्ट सौंपी गयी है उसके बारे में ठोस परिणाम देना होगा।
डॉ. सिंह ने राष्ट्रपति भवन में अलंकरण समारोह के बाद संवाददाताओं से कहा कि आतंकवाद से लडने के लिये पाकिस्तान और भारत को मिलकर प्रयास करना होगा। उन्होंने कहा कि इसके साथ ही पाकिस्तान को मुम्बई आतंकवादी हमले की जांच के मामले में ठोस परिणाम देना होगा। डॉ. सिंह ने कहा कि वह जी.20 शिखर सम्मेलन के दौरान अमरीका के राष्ट्रपति बराक आ॓बामा से भी मिलेंगे। उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन के दौरान आतंकवाद के मुद्दे पर भी विचार होगा। उन्होंने कहा कि इसके अलावा अन्य कई महत्वपूर्ण और बहुपझीय मामलों पर भी चर्चा होगी। इस चर्चा में वैश्विक आर्थिक मंदी से निपटने के लिये भी सहमति बनाई जायेगी।

'भाई' को नहीं मिला नेतागिरी का मौक़ा



नई दिल्ली फिल्म अभिनेता संजय दत्त पर सुप्रीम कोर्ट ने शिकंजा कसते हुए उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी है। जस्टिस बालाकृष्णन ने कहा ने मंलवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि मुंबई बम ब्लास्ट का दोषी होने के कारण संयज दत्त चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। कोर्ट को सोमवार को ही मुन्नाभाई के मामले पर फैसला सुनाना था, लेकिन कल उसने यह फैसला सुरक्षित रखा था।

गौरतलब है कि मुन्नाभाई आर्म्स ऐक्ट के तहत दोषी हैं और उन्हे 6 साल की सजा सुनाई गई है। फिलहाल वे जमानत पर चल रहे हैं। संजय के चुनाव लड़ने का सीबीआई ने विरोध किया था। कानून के मुताबिक दो वर्ष से ज्यादा की सजा होने पर कोई भी व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता है।

गौरतलब है संजय दत्त को समाजवादी पार्टी ने लखनऊ संसदीय सीट से प्रत्याशी घोषित किया था। मगर अब वे चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। हालांकि पार्टी ने पहले ही कह दिया था कि यदि संजय दत्त को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं मिलती है तो उनकी जगह मान्यता दत्त लखनऊ सीट से पार्टी की उम्मीदवार होंगी।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद समाजवादी पार्टी की तरफ से और खुद मुन्नाभाई की तरफ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।

बाटला के शहीद से मजाक की इजाज़त नहीं




नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को केंद्रीय सूचना आयोग [सीआईसी] के उस आदेश पर स्थगन लगा दिया, जिसमें आयोग ने पुलिस को पिछले साल बाटला हाउस मुठभेड़ में मारे गए इंडियन मुजाहिद्दीन के दो संदिग्धों और शहीद हुए एक पुलिस अधिकारी की पोस्टमार्टम रिपोर्टो को उजागर करने का आदेश दिया था।

न्यायमूर्ति एस. रविंद्र भट्ट ने दिल्ली पुलिस की एक याचिका पर आदेश जारी किया। पुलिस ने याचिका में कहा था कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट उजागर करने से राजधानी में 13 सितंबर को हुए सिलसिलेवार धमाकों के मामले में चल रहीं जांच प्रभावित होगी।

अदालत ने उस आदेश पर भी स्थगन लगा दिया, जिसमें सीआईसी ने पुलिस को निर्देश दिया था कि सिलसिलेवार धमाकों के आरोपियों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी की प्रतियां सूचना के अधिकार कानून के तहत दी जाएं। पुलिस की ओर से वकील मुक्ता गुप्ता ने दलील दी कि जांच अभी जारी है और पोस्टमार्टम रिपोर्टो से जांच प्रभावित होगी, जिनमें कई सुराग हैं।

सीआईसी द्वारा नौ मार्च को जारी आदेश पर स्थगन लगाने की मांग करते हुए गुप्ता ने कहा, 'घटना में [मुठभेड़ में] दो आतंकी मारे गए और दो बच निकले। हम अभी फरार लोगों का पता लगा रहे हैं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट उजागर करने से इस्तेमाल किए गए हथियारों और अन्य चीजों के संबंध में जानकारी सामने आ सकती है, जिसके आधार पर कई पुष्टि करने वाले सबूत नष्ट हो सकते हैं।' दक्षिण दिल्ली में 19 सितंबर को बाटला हाउस मुठभेड़ के दौरान इंडियन मुजाहिद्दीन का संदिग्ध आतंकी और सिलसिलेवार धमाकों का मुख्य आरोपी आतिफ अमीन तथा सह आरोपी साजिद मारे गए थे। इस मुठभेड़ में पुलिस निरीक्षक एमसी शर्मा भी शहीद हो गए थे।

पुलिस ने कल सीआईसी के आदेश को चुनौती देते हुए अदालत में याचिका दायर की थी। हालांकि आयोग ने पुलिस से कहा था कि प्राथमिकी में दर्ज लोगों के नाम, मुठभेड़ और जांच में शामिल अधिकारियों तथा पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों का ब्योरा हटा लें। वकील प्रशांत भूषण ने इंसपेक्टर शर्मा और मुठभेड़ में मारे गए कथित आतंकियों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट और प्राथमिकी की प्रतियों की मांग की थी। राजधानी में हुए सिलसिलेवार धमाकों के एक हफ्ते के भीतर मुठभेड़ हुई थी।

भारत में जर्मन तथा यूरोपीय संस्कृति का प्रसार करेगा "डॉयच वेल'



बेंगलूर। जर्मनी की बहुराष्ट्रीय मनोरंजन तथा प्रसारण चैनल डॉयच वेल ने भारतीय बाजार में अपनी नई सेवा डीडब्ल्यू-टीवी एशिया प्लस की शुरुआत करने की घोषणा की है। इस चैनल द्वारा दर्शकों के लिए प्रतिदिन 18 घंटे अंग्रेजी में मनोरंजन कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाएगा। इस नए चैनल में खास तौर पर यूरोपीय जीवनशैली, संस्कृति तथा कलाओं का प्रदर्शन किया जाएगा। इनके साथ ही वैश्विक अर्थतंत्र तथा व्यापार की खबरों को भी मुख्य रूप से प्रसारित किया जाएगा। नए चैनल को लांच करने के बारे में पत्रकारों के साथ बातचीत करते हुए डॉयच वेल के पदाधिकारियों ने बताया कि जो दर्शक अधिक संख्या में जर्मन कार्यक्रमों को देखना चाहते हैं उनके लिए इस चैनल द्वारा प्रतिदिन 16 घंटे जर्मन कार्यक्रमों का प्रसारण भी किया जाएगा। ऐसे दर्शक दिन में आठ घंटे अंग्रेजी के कार्यक्रम भी साथ ही में देख सकेंगे।
इन पदाधिकारियों ने बताया कि डॉयच वेल ने उन दर्शकों को अपने लक्ष्य में रखते हुए इस नए चैनल की शुरुआत की है जो जर्मनी के हैं तथा दूसरे देशों ेमें बसे हुए हैं। जो भारतीय जर्मनी जाना चाहते हैं तथा वहां जाने के पहले ही वहां की भाषा तथा संस्कृति के विभिन्न आयामों को समझना चाहते हैं उनके लिए भी यह चैनल काफी मददगार रहेगा। इस चैनल द्वारा एक विशेष कार्यक्रम प्रसारित किया जाएगा जिसे "यूरोमैक्स एक्स' का नाम दिया गया है। इस कार्यक्रम में यूरोपीय जीवन तथा संस्कृति की जानकारी के साथ ही जर्मनी के ग्लैमर वर्ल्ड के बारे में भी काफी जानकारियां दी जाएंगी। इनके साथ ही जर्मनी तथा अन्य यूरोपीय देशों में बनने वाले नवीनतम वाहनों के बारे में भी समसामयिक जानकारियां होंगी।
उल्लेखनीय है कि डीडब्ल्यू-टीवी एशिया प्लस के कार्यक्रम कई चैनलों पर देखे जा सकेंगे। पूरे देश के केबल सेवा प्रदाता इसके द्वारा प्रसारित किए जाने वाले कार्यक्रमों को अपने चैनलों में स्थान देंगे।

मनोरंजन तथा विलासिता करों में कटौती लागू




* सिनेमाघरों तथा होटल-रेस्तरांओं की सेवाएं होंगी सस्ती

* मनोरंजन कर में 10 फीसदी तथा विलासिता कर में दो फीसदी की कटौती

* होटलों ने मंदी के मौसम में ग्राहकों को लुभाने की नई योजना तैयार कर ली


बेंगलूर। वित्त वर्ष 2009-10 के लिए कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येड्डीयुरप्पा द्वारा घोषित बजट प्रस्तावों में मनोरंजन कर में कटौती का प्रावधान किया गया था। यह प्रावधान 1 अप्रैल, बुधवार से लागू हो गया है। पर्यटन एवं आतिथ्य क्षेत्रों से जुड़े होटलों तथा रेस्तरांओं को भी राज्य सरकार की तरफ से कुछ कर राहत मिलने की बात बताई जा रही है। आर्थिक मंदी के इस दौर में कोई सरकार इससे बेहतर तोहफा और क्या दे सकती थी? राज्य में मनोरंजन कर जहां पूर्व में 40 फीसदी की दर से वसूला जाता था वहीं अब यह 30 फीसदी की दर से वसूला जाएगा। यहां के सिनेमाघरों में आने वाले सिने-प्रेमियों की संख्या वैश्विक मंदी के कारण हाल के समय में काफी घट गई थी जिसके कारण सिनेमाघरों ने अपने टिकटों के मूल्य में पहले ही कटौती कर दी है। मनोरंजन कर की दरों में कटौती के कारण टिकटों का मूल्य आगे भी कम किए जाने की संभावना बनी है।

इसी तरह की छूट होटलों में कमरों की बुकिंग पर लिए जाने वाले विलासिता कर (लक्जरी टैक्स) के मामले में भी दी गई है। जहां पहले 500 से 1000 रुपए किराए वाले होटलों के कमरों की बुकिंग पर 6 फीसदी की दर से राज्य सरकार कर वसूला करती थी, वहीं अब इन कमरों की बुकिंग पर मात्र 4 फीसदी की दर से कर वसूला जाएगा। 1000 रुपए से 2000 रुपए तथा 2000 रुपए से अधिक किराए वाले कमरों की बुकिंग पर भी क्रमश: 6 एवं 10 प्रतिशत की दर से कर वसूला जाएगा।

शहर के होटलों तथा रेस्तरांओं ने इस कर कटौती का फायदा अपने ग्राहकों तक पहुंचाने के साथ ही उनके लिए मनोरंजन के खास प्रबंध करने की योजना भी बना ली है। इन होटलों तथा रेस्तरांओं में ग्राहकों को हरेक सेवा पहले से कम दर पर मिलने के साथ ही उन्हें खास मनोरंजन भी मिलेंगे। इनमें आईपीएल ट्‌ वेंटी-20 मैचों का सीधा प्रसारण मुख्य रूप से शामिल है। यहां के कई होटलों ने अपनी सेवाओं को मूल्य के दृष्टिकोण से अधिक आकर्षक बनाने के लिए आईपीएल मैचों के दौरान नई रैक रेट (घोषित मूल्य) तय कर ली है। इनके ग्राहकों को इन होटलों में शीर्ष गुणवत्तापूर्ण सेवाएं पहले की अपेक्षा बेहतर तथा प्रतियोगी कीमतों पर मिलेंगी। चूंकि इस वर्ष आईपीएल मैचों को समूहबद्ध होकर स्टेडियम में देखने का मौका प्रत्येक भारतीय तथा बेंगलूरवासी को नहीं मिलेगा इसलिए इन होटलों ने बड़े तथा नियमित आकार वाले छोटे टेलीविजन सेट्‌स पर भी आईपीए मैचोें का प्रसारण करने की व्यवस्था भी कर ली है। इनके साथ कई क्लबों के नाम भी जुड़ गए हैं जो दक्षिण अफ्रीका में आयोजित होने जा रहे मैचों का अपने सदस्यों के लिए सीधा प्रसारण दिखाएंगे ताकि उनके सदस्य खेल का मजा मिल-जुलकर ले सकें।
जानकारी के मुताबिक, वैश्विक मंदी के बावजूद बेंगलूर के मनोरंजन तथा आतिथ्य व्यापार जगत में जो उत्साह पनपा है उसे अब कोई गुब्बारा नहीं माना जा सकता है। राज्य सरकार ने अपने बजटीय वादे पर खरे उतरते हुए इन कर कटौतियों के प्रस्तावों को एक शासकीय अधिसूचना जारी कर निर्धारित तिथि से ही जारी कर दिया है। स्टांप तथा पंजीयन विभाग ने भी अपनी तरफ से स्टांप शुल्क में कटौती कर व्यापार जगत का उत्साह बढ़ाया है।

Monday, March 30, 2009

मुलायम पर माया के कठोर तीर



वरुण गांधी पर रातों-रात राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाना, दरअसल कहीं पर निगाहें-कहीं पर निशाना कहावत को चरितार्थ करने वाली घटना है। वरुण तो मोहरा बन गए हैं। पीलीभीत की सात और आठ मार्च की जनसभाओं में यदि वे उग्र भाषण नहीं देते तो उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को मुसलमान मतदाताओं को बसपा के पक्ष में एकजुट करने का यह मौका ही नहीं मिलता। उनके निशाने पर वरुण नहीं, समाजवादी पार्टी और उसके मुखिया मुलायम सिंह यादव के साथ-साथ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं। भाजपा भी इस प्रकरण से लाभ लेना चाहती थी, लेकिन चौबीस घंटे के भीतर मायावती ने जिस तरह वरुण
गांधी पर रासुका तामील कराकर मामले को तूल दिया, उससे साफ हो गया है कि एेसा करके वे राज्य के 19 प्रतिशत मुसलमानों को खुश करना चाहती हैं।
सर्वविदित है कि देश में सर्वाधिक मुस्लिम मतदाता उत्तर प्रदेश में ही रहते हैं। आजादी के बाद 1989 तक हुए चुनावों में से अधिकांश में मुस्लिम मतदाताओं ने कांग्रेस को ही वोट दिया, लेकिन बाबरी विध्वंस के बाद कांग्रेस से उनका मन खट्टा हुआ। यूपी में वे मुलायम सिंह यादव की पार्टी को ताकत देने लगे तो अन्य राज्यों में उन्होंने दूसरे धर्मनिरपेक्ष दलों को मजबूती देनी शुरू कर दी। जैसे आंध्र प्रदेश में वे तेलुगूदेशम को, तमिलनाड़ु में डीएमके, एडीएमके, पीएमके, केरल और पश्छिम बंगाल में वाममोर्चा को, कर्नाटक में जनतादल एस को, बिहार में राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल एकीकरण को वोट देने लगे तो जहां कोई विकल्प नहीं दिखा, वहां भाजपा को परास्त करने के लिए उसने कांग्रेस को भी वोट दिया। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का जनाधार धीरे-धीरे सिकुड़ता चला गया और सपा के अलावा बसपा दूसरी बड़ी ताकत बनकर उभरी।
मायावती ने पहले दलितों को अपने साथ एकजुट किया। इसके बाद उन्होंने ब्राह्मण मतदाताओं को अपने साथ जोड़ा और अब मुसलमान मतदाताओं को रिझाकर वही समीकरण बनाने की ओर अग्रसर हैं, जिसके बूते कांग्रेस लंबे समय तक राज्य और
केन्द्र में राज करती रही। गौरतलब बात है कि यूपी में 19 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं जो लोकसभा की 35 और विधानसभा की 115 सीटों को प्रभावित करते हैं।
यह एक विडंबना है कि सभी पार्टियां समय-समय पर मुसलमानों से मुख्यधारा की पार्टियों को वोट देने की मांग तो करती हैं, लेकिन ये दल उतनी तादाद में उन्हें टिकट नहीं देते जितना देना चाहिए। 2004 के पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 417 प्रत्याशी खड़े किए, जिसमें से सिर्फ 33 मुसलमान प्रत्याशी थे। इसमें से सिर्फ 10 जीते। बीएसपी ने 435 उम्मीदवारों में 50मुस्लिम प्रत्याशी उतारे, जिसमें 4 जीते। समाजवादी पार्टी ने 237 प्रत्याशियों में से 38 मुसलमानों को टिकट दिया, जिसमें से 7 जीते। सीपीएम ने 70 में से 10 मुस्लिमों को खड़ा किया जिसमें से 5 जीते। इन आंकड़ों की गहराई में जाने पर यही पता चलता है कि सीपीएम को छोड़कर शेष दलों ने मुस्लिम बहुल इलाकों से ही मुस्लिम प्रत्याशियों को खड़ा किया।




ऐसा सिर्फ 2004 के ही लोकसभा या किसी एक विधानसभा चुनाव में ही नहीं हुआ, हर छोटे-बड़े चुनाव में मुस्लिम वोटरों के मद्देनजर इसी तरह से कैंडिडेट तय किए जाते हैं। बीएसपी सुप्रीमो मायावती की सोशल इंजीनियरिंग के करिश्मे को थोड़ी देर भूल कर अगर यूपी के पिछले विधानसभा चुनाव नतीजों पर गौर करें तो पाएंगे कि जहां-जहां मायावती के मुस्लिम कैंडिडेट बीजेपी को हराने में सक्षम थे, वहां मुसलमानों ने बीएसपी के पक्ष में वोट डाला। पिछले कुछ महीने से मायावती लगातार कद्दावर मौलवियों को अपने पक्ष में लाने की कोशिश कर रही हैं। लखनऊ में ही मायावती ने कई मुस्लिम सम्मेलन कर डाले हैं। वरुण पर रासुका के पीछे मायावती की मुसलमानों को खुश करने की मानसिकता ही नजर आ रही है। उनके इस दांव से कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के नेताओं की सिट्टी-पिट्टी गुम है।

गोविंदा आउट, नगमा इन



फिल्म अभिनेता व उत्तर मुंबई के सांसद गोविंदा इस बार लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे। यह घोषणा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने की।महाराष्‍ट्र प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में चह्वाण ने पत्रकारों से कहा कि गोविंदा ने चुनाव लड़ने को लेकर अनिच्छा जाहिर की है। उन्होंने कहा कि हमने राज्य से चुने गए पार्टी के सभी सांसदों की उपस्थिति में उनके सामने मुंबई उत्तर क्षेत्र से चुनाव लड़ने का प्रस्ताव रखा, लेकिन उन्होंने इसे लेकर अपनी अनिच्छा जाहिर की। चव्हाण ने कहा कि मुंबई उत्तर संसदीय क्षेत्र की सीट से अभिनेत्री नगमा ने पार्टी का टिकट मांगा है। नगमा ने रविवार को कहा कि वह मुंबई उत्तर या फिर मुंबई उत्तर-पश्चिम क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं।

विदित हो कि गोविंदा ने वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता राम नाइक को हराया था।

गौरतलब है कि होली के दिन किन्नरों में नोट बांटने की घटना को लेकर भी गोविंदा विवादों में घिर गए थे। चुनाव आयोग ने इस मामले में जांच के आदेश दिए हैं।

बोल-चाल की हिन्दी ज़रूरी




कार्यालय के विभिन्न विषयों के लिए निर्धारित अलग-अलग शब्दावलियों के बीच में आम बोलचाल की हिन्दी शब्दावली ठगी सी खड़ी होकर अपरिचित शब्दों को देखती रही। प्रयोगकर्ता इन शब्दों को देखकर विचित्र भाव-भंगिमाएं बनाते थे। परिणामस्वरूप अधिकांश समय यह नए शब्द प्रयोगकर्ता की देहरी तक ही पहुँच कर आगे नहीं बढ़ पाते थे और आज भी लगभग यही स्थिति है। भाषाशास्त्र के अनुसार यदि शब्दों का प्रयोग न किया जाए तो शब्द लुप्त हो जाते हैं। तो क्या राजभाषा के अनेकों शब्द प्रयोग की कसौटी पर कसे बिना ही लुप्त हो जाएंगे ? यह आशंका अब ऊभरने लगी है जबकि राजभाषा अधिकारियों की राय में इस प्रकार की सोच समय से काफी पहले की सोच कही जाएगी। राजभाषा अधिकारियों का तो कहना है कि राजभाषा की पारिभाषिक, तकनीकी आदि शब्दावलियों का खुलकर प्रयोग हो रहा है। एक हद तक यह सच भी है क्योंकि इन शब्दावलियों के प्रयोगकर्ता राजभाषा अधिकारी ही हैं। इन शब्दावलियों का अधिकांश प्रयोग अनुवाद में किया जाता है जिसे कर्मचारियों का छोटा प्रतिशत समझ पाता है। राजभाषा कार्यान्वयन की इसे एक उपलब्धि माना जाता है तथा कहा जाता है कि इन शब्दावलियों को कर्मी समझ रहे हैं अतएव इन शब्दावलियों को स्वीकार किया जा रहा है। सकार और नकार के द्वंद्व में राजभाषा ऐसे प्रगति कर रही है जैसे तूफानी दरिया में एक कश्ती। राजभाषा अधिकारी चप्पू चलाता मल्लाह की भूमिका निभाते जा रहा है।
हिंदी के साहित्यकार अपनी रचनाओं में जब कभी भी सरकारी कार्यालयों के पात्रों का सृजन करते हैं तो अक्सर वह पात्र अंग्रेज़ी मिश्रित भाषा बोलता है जबकि रचनाकार यदि राजभाषा की कुछ शब्दावलियों का प्रयोग करें तो पाठक राजभाषा की शब्दावली को सहजता से स्वीकार कर सकता है। यह मात्र एक संकेत है। राजभाषा की शब्दावली को आसान करना तर्कपूर्ण नहीं है क्योंकि सरलीकरण के प्रयास से अर्थ का अनर्थ होने की संभावना रहती है। केन्द्रीय सरकार के विभिन्न कार्यालयों, उपक्रमों तथा राष्ट्रीयकृत बैंकों द्वारा राजभाषा कार्यान्वयन के सघन प्रयास किया जा रहा है यदि हिंदी साहित्यकार भी इस प्रयास में योगदान करें तो राजभाषा की शब्दावली अपनी दुरूहता तथा अस्वाभाविकता के दायरे से सफलतापूर्वक बाहर निकल सकती है।

Saturday, February 14, 2009

कैरेक्टर सर्टिफिकेट हो तो मिलेगा मकान



बेंगलूर। अगर आप इस शहर में किराए पर मकान ढूंढने की तैयारी में हैं तो ज़रा ख़ास तैयारियों के साथ किस्मत आज़मायें। हो सकता है कि आपको अपनी पहचान के साथ ही चरित्र का भी सर्टिफिकेट पेश करना पड़े। खासकर अगर आप बैचलर और युवा हैं। बेंगलूर में मकान मालिक अब अकेली या गैर शादी-शुदा युवतियों को घर देने से पहले उनसे कंपनी के लेटर हेड पर कैरक्टर सर्टिफिकेट बनवाने की मांग कर रहे हैं।

अगर इस बात पर गौर करें कि बेंगलूर में संभ्रांत तबके के ज्यादातर लोग गैर शादी-शुदा हैं तो मकान मालिकों की इस मांग का काफी बड़ा असर होगा। 29 साल की एक फाइनैंस प्रफेशनल का गुस्सा तब सातवें आसमान पर चढ़ गया, जब मकान मालिक ने उससे 'कैरक्टर' सर्टिफिकेट की मांग कर डाली।वह बताती हैं, 'मुझे और मेरे परिवार को एक मकान पसंद आया वह सस्ता था और दूसरा इससे ऑफिस आने-जाने में सहूलियत थी। ब्रोकर हमें मकान मालिक के घर कोरमंगला ले गया, जहां हमें किराये और डिपॉजिट अमाउंट की बात करनी थी। पर तब हमें बेहद धक्का लगा जब हमसे कैरक्टर सर्टिफिकेट मांगा गया। हम में से कोई भी शादीशुदा नहीं था, इसलिए हमसे ऐसे सर्टिफिकेट की मांग की जा रही थी।'




यही नहीं उससे यह भी पूछा गया कि क्या कभी वह देर रात भी घर आती है। गुस्से से आगबबूला होकर उसने कहा, 'इस बात को पूछने का क्या मतलब बनता है ? क्या किसी को अच्छे कैरक्टर का बनने के लिए 20 साल की उम्र में शादी कर लेनी चाहिए? मैं आज जहां हूं, वहां तक पहुंचने के लिए मैंने कड़ी मेहनत की है। मैं खुद को बेइज्जत करने का हक इस तरह किसी को नहीं दे सकती।'

इस तरह के हालात से दो-चार होने वाली यह युवती अकेली नहीं हैं। यहां तक कि रिहायशी इलाकों के कई 'पॉश' अपार्टमंट्‌स भी खासतौर पर किराएदार बनना चाह रहे सिंगल शख्स से काफी बुरा बर्ताव करते हैं।