Wednesday, April 1, 2009

बुद्धिमतापूर्ण संवेदनशीलता का महत्व


बेंगलूर। बुद्धिमत्तापूर्ण संवेदनशीलता या संवेदनशीलता अनुपात (इमोशनल कोशिएंट/ईक्यू) हाल के वर्षों में व्यावसायिक सफलता का एक बड़ा कारक बन गया है। यह अवधारणा व्यवसाय प्रबंधकों की इस क्षमता को तौलने के लिए विकसित की गई है कि वे अपनी संवेदनाओं को कितना समझ पाते हैं तथा अपने साथ काम करने वालों की भावनाओं का ख्याल रखने में वे कितने सफल होते हैं। व्यावसायिक सफलता प्रबंधकों की इस क्षमता पर काफी हर तक निर्भर करती है। शोधकार्यों से पता चला है कि बुद्धिमत्तापूर्ण संवेदनशीलता लोगों के निजी और पेशेवर जीवन में 80 फीसदी सफलता दिला सकती है।
जहॉं बुद्धिमत्ता अनुपात (आईक्यू) का संबंध दिमाग से होता है वहीं ईक्यू का संबंध दिल होता है। इसका यह अर्थ नहीं कि यहॉं दिमाग पर दिल की जीत की बात की जा रही है बल्कि इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि अपने आस-पास के लोगों के साथ सहानुभूति रखना और उनके दिल जीतना पेशेवर जीवन में सफल होने के लिए भी जरूरी है। लोगों के दिलों पर जगह बनाकर ही उनके दिमागों तक पहुंचा जा सकता है। एक वैज्ञानिक अध्ययन में पाया गया है कि भावनात्मक जागरूकता और संवेदनाओं का बेहतर प्रयोग करने की क्षमता से जीवन में खुशियां और सफलताएं हासिल की जा सकती हैं।
बुद्धिमत्तापूर्ण संवेदनशीलता (ईआई) को साधारण शब्दों में इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है, "निजी भावनाआएं के साथ ही दूसरों की या किसी समूह की भावनाओं को समझने, उनका आंकलन और प्रबंधन करने तथा जीवन या व्यवसाय से जुड़ी मांग व दबाव से निपटने की योग्यता और क्षमता को बुद्धिमत्तापूर्ण संवेदनशीलता कहा जाता है।' ईआई को एक व्यापक स्वरूप में देखने के लिए किसी व्यक्ति में एक समूह के विभिन्न लोगों के साथ बेहतर संबंध विकसित करने की क्षमता सबसे महत्त्वपूर्ण कारक होता है। मशहूर मनोवैज्ञानिक डैनियल गोलमैन के मुताबिक, बुद्धिमत्तापूर्ण संवेदनशीलता के चार प्रमुख कारक इस प्रकार हैंः
* आत्म जागरूकता ः कोई निर्णय लेते समय निजी भावनओं को समझने और महत्त्वपूर्ण निर्णयों पर उनके प्रभाव का आंकलन करने की क्षमता।
* आत्म प्रबंधन ः किसी निर्णय का दिशा-निर्देशन करते समय निजी भावनाओं पर नियंत्रण पाने और परिस्थितियों के साथ ढलने की क्षमता।
* सामाजिक जागरूकता ः दूसरों की भावनाओं को समझकर प्रतिक्रिया व्यक्त करने और सामाजिक ताने-बाने को समझने की क्षमता।
* संबंधों का प्रबंधन ः आपसी टकराव का प्रबंधन करते हुए दूसरों को प्रेरित, प्रभावित और विकसित करने की क्षमता।
नेतृत्वशक्ति की मुख्य दक्षताओं में बुद्धिमत्तापूर्ण संवेदनशीलता को पहले स्थान पर रखा जा सकता है। किसी भी क्षेत्र का नेतृत्व करने वालों में यह क्षमता होनी ही चाहिए कि वे अपने साथ या आस-पास के लोगों को प्रेरित व प्रोत्साहित कर सकें। यदि वे अपनी भावनाओं के बारे में ही जागरूक नहीं होंगे, अपने साथ के लोगों या आस-पास के वातावरण को नहीं समझ पाएंगे तो कहा जाएगा कि उनका संवेदनशीलता अनुपात (ईक्यू) कम है। इस हालत में वे न तो दूसरों को प्रेरित नहीं कर सकते हैंऔर न ही समाज का नेतृत्व। आधुनिक औद्योगिक इकाइयों में ऐसे कार्यक्षेत्र विकसित किए जाते हैं, जिनमें कर्मचारियों के बीच मुक्त विचार-विमर्श और ज्ञान का आदान-प्रदान हो सके, लोगों को एक समूह के रूप में काम करने की प्रेरणा मिल सके और कर्मचारियों तथा उनके वरिष्ठ अधिकारियों के बीच द्विपक्षीय सम्मान का भाव विकसित हो सके। इन हालात में बेहतर ईआई वाले प्रबंधक अपनी टीम को बेहतर समझ सकते हैं और टीम के प्रत्येक सदस्य की अपनी-अपनी क्षमताओं का पूरा प्रयोग भी कर सकते हैं।
इस विषय में फेडरेशन ऑफ कर्नाटक चेंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (एफकेसीसीआई) के उपाध्यक्ष एनएस श्रीनिवासमूर्ति कहते हैं, "विभिन्न औद्योगिक इकाइयों में ईआई का बेहतर प्रयोग एक स्वागत योग्य कदम है। इससे प्रबंधन विज्ञान के विभिन्न आयामों को बेहतर रूप से समझना और उपयोग में लाना आसान हो जाता है। इसके लिए ईक्यू का आंकलन करने की विस्तृत प्रक्रिया को जानना-समझना महत्त्वपूर्ण कदम है। यह जानना भी जरूरी है कि कोई व्यक्ति किस तरह से अपना ईक्यू बढ़ा सकता है।'
कॉर्पोरेट घरानों द्वारा अपने शीर्ष प्रबंधकों की ईआई या ईक्यू में बेहतरी करने के लिए की गई पहल के अच्छे नतीजे आए हैं। इनसे जहां उनकी उत्पादकता में अभिवृद्धि हुई है वहीं उनका नजरिया पहले से अधिक सकारात्मक भी हुआ है। कंपनियों के उत्पाद तथा सेवाओं की बिक्री बढ़ाने, कर्मचारियों को प्रसन्न रखने तथा ग्राहकों को संतोष देने में भी ईआई से संबंधित पहल काफी कारगर रहे हैं। आज वैश्विक मंदी के इस दौर में भी इस प्रकार के पहल संदर्भहीन नहीं हुए हैं। प्रो. चंद्रकला वी कहती हैं, "बुद्धिमत्तापूर्ण संवेदनशीलता का महत्व आने वाले समय में लगातार बढ़ता जाएगा तथा भविष्य में यह आज से अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाने लगेगा। युवा पेशेवर कामगारों के लिए यह जरूरी है कि वे अपने शैक्षणिक दिनों से ही इस संबंध में खुद को जागरूक बनाना शुरू कर दें। इससे वे किसी भी हालत में खुद को ढालने में सक्षम हो जाते हैं।'

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