Tuesday, March 31, 2009

मुम्बई हमले के मामले में पाक को ठोस परिणाम देना होगा : मनमोहन



प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आज कहा कि पाकिस्तान को मुम्बई आतंकवादी हमले के मामले में भारत द्वारा जो जांच रिपोर्ट सौंपी गयी है उसके बारे में ठोस परिणाम देना होगा।
डॉ. सिंह ने राष्ट्रपति भवन में अलंकरण समारोह के बाद संवाददाताओं से कहा कि आतंकवाद से लडने के लिये पाकिस्तान और भारत को मिलकर प्रयास करना होगा। उन्होंने कहा कि इसके साथ ही पाकिस्तान को मुम्बई आतंकवादी हमले की जांच के मामले में ठोस परिणाम देना होगा। डॉ. सिंह ने कहा कि वह जी.20 शिखर सम्मेलन के दौरान अमरीका के राष्ट्रपति बराक आ॓बामा से भी मिलेंगे। उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन के दौरान आतंकवाद के मुद्दे पर भी विचार होगा। उन्होंने कहा कि इसके अलावा अन्य कई महत्वपूर्ण और बहुपझीय मामलों पर भी चर्चा होगी। इस चर्चा में वैश्विक आर्थिक मंदी से निपटने के लिये भी सहमति बनाई जायेगी।

'भाई' को नहीं मिला नेतागिरी का मौक़ा



नई दिल्ली फिल्म अभिनेता संजय दत्त पर सुप्रीम कोर्ट ने शिकंजा कसते हुए उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी है। जस्टिस बालाकृष्णन ने कहा ने मंलवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि मुंबई बम ब्लास्ट का दोषी होने के कारण संयज दत्त चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। कोर्ट को सोमवार को ही मुन्नाभाई के मामले पर फैसला सुनाना था, लेकिन कल उसने यह फैसला सुरक्षित रखा था।

गौरतलब है कि मुन्नाभाई आर्म्स ऐक्ट के तहत दोषी हैं और उन्हे 6 साल की सजा सुनाई गई है। फिलहाल वे जमानत पर चल रहे हैं। संजय के चुनाव लड़ने का सीबीआई ने विरोध किया था। कानून के मुताबिक दो वर्ष से ज्यादा की सजा होने पर कोई भी व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता है।

गौरतलब है संजय दत्त को समाजवादी पार्टी ने लखनऊ संसदीय सीट से प्रत्याशी घोषित किया था। मगर अब वे चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। हालांकि पार्टी ने पहले ही कह दिया था कि यदि संजय दत्त को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं मिलती है तो उनकी जगह मान्यता दत्त लखनऊ सीट से पार्टी की उम्मीदवार होंगी।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद समाजवादी पार्टी की तरफ से और खुद मुन्नाभाई की तरफ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।

बाटला के शहीद से मजाक की इजाज़त नहीं




नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को केंद्रीय सूचना आयोग [सीआईसी] के उस आदेश पर स्थगन लगा दिया, जिसमें आयोग ने पुलिस को पिछले साल बाटला हाउस मुठभेड़ में मारे गए इंडियन मुजाहिद्दीन के दो संदिग्धों और शहीद हुए एक पुलिस अधिकारी की पोस्टमार्टम रिपोर्टो को उजागर करने का आदेश दिया था।

न्यायमूर्ति एस. रविंद्र भट्ट ने दिल्ली पुलिस की एक याचिका पर आदेश जारी किया। पुलिस ने याचिका में कहा था कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट उजागर करने से राजधानी में 13 सितंबर को हुए सिलसिलेवार धमाकों के मामले में चल रहीं जांच प्रभावित होगी।

अदालत ने उस आदेश पर भी स्थगन लगा दिया, जिसमें सीआईसी ने पुलिस को निर्देश दिया था कि सिलसिलेवार धमाकों के आरोपियों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी की प्रतियां सूचना के अधिकार कानून के तहत दी जाएं। पुलिस की ओर से वकील मुक्ता गुप्ता ने दलील दी कि जांच अभी जारी है और पोस्टमार्टम रिपोर्टो से जांच प्रभावित होगी, जिनमें कई सुराग हैं।

सीआईसी द्वारा नौ मार्च को जारी आदेश पर स्थगन लगाने की मांग करते हुए गुप्ता ने कहा, 'घटना में [मुठभेड़ में] दो आतंकी मारे गए और दो बच निकले। हम अभी फरार लोगों का पता लगा रहे हैं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट उजागर करने से इस्तेमाल किए गए हथियारों और अन्य चीजों के संबंध में जानकारी सामने आ सकती है, जिसके आधार पर कई पुष्टि करने वाले सबूत नष्ट हो सकते हैं।' दक्षिण दिल्ली में 19 सितंबर को बाटला हाउस मुठभेड़ के दौरान इंडियन मुजाहिद्दीन का संदिग्ध आतंकी और सिलसिलेवार धमाकों का मुख्य आरोपी आतिफ अमीन तथा सह आरोपी साजिद मारे गए थे। इस मुठभेड़ में पुलिस निरीक्षक एमसी शर्मा भी शहीद हो गए थे।

पुलिस ने कल सीआईसी के आदेश को चुनौती देते हुए अदालत में याचिका दायर की थी। हालांकि आयोग ने पुलिस से कहा था कि प्राथमिकी में दर्ज लोगों के नाम, मुठभेड़ और जांच में शामिल अधिकारियों तथा पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों का ब्योरा हटा लें। वकील प्रशांत भूषण ने इंसपेक्टर शर्मा और मुठभेड़ में मारे गए कथित आतंकियों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट और प्राथमिकी की प्रतियों की मांग की थी। राजधानी में हुए सिलसिलेवार धमाकों के एक हफ्ते के भीतर मुठभेड़ हुई थी।

भारत में जर्मन तथा यूरोपीय संस्कृति का प्रसार करेगा "डॉयच वेल'



बेंगलूर। जर्मनी की बहुराष्ट्रीय मनोरंजन तथा प्रसारण चैनल डॉयच वेल ने भारतीय बाजार में अपनी नई सेवा डीडब्ल्यू-टीवी एशिया प्लस की शुरुआत करने की घोषणा की है। इस चैनल द्वारा दर्शकों के लिए प्रतिदिन 18 घंटे अंग्रेजी में मनोरंजन कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाएगा। इस नए चैनल में खास तौर पर यूरोपीय जीवनशैली, संस्कृति तथा कलाओं का प्रदर्शन किया जाएगा। इनके साथ ही वैश्विक अर्थतंत्र तथा व्यापार की खबरों को भी मुख्य रूप से प्रसारित किया जाएगा। नए चैनल को लांच करने के बारे में पत्रकारों के साथ बातचीत करते हुए डॉयच वेल के पदाधिकारियों ने बताया कि जो दर्शक अधिक संख्या में जर्मन कार्यक्रमों को देखना चाहते हैं उनके लिए इस चैनल द्वारा प्रतिदिन 16 घंटे जर्मन कार्यक्रमों का प्रसारण भी किया जाएगा। ऐसे दर्शक दिन में आठ घंटे अंग्रेजी के कार्यक्रम भी साथ ही में देख सकेंगे।
इन पदाधिकारियों ने बताया कि डॉयच वेल ने उन दर्शकों को अपने लक्ष्य में रखते हुए इस नए चैनल की शुरुआत की है जो जर्मनी के हैं तथा दूसरे देशों ेमें बसे हुए हैं। जो भारतीय जर्मनी जाना चाहते हैं तथा वहां जाने के पहले ही वहां की भाषा तथा संस्कृति के विभिन्न आयामों को समझना चाहते हैं उनके लिए भी यह चैनल काफी मददगार रहेगा। इस चैनल द्वारा एक विशेष कार्यक्रम प्रसारित किया जाएगा जिसे "यूरोमैक्स एक्स' का नाम दिया गया है। इस कार्यक्रम में यूरोपीय जीवन तथा संस्कृति की जानकारी के साथ ही जर्मनी के ग्लैमर वर्ल्ड के बारे में भी काफी जानकारियां दी जाएंगी। इनके साथ ही जर्मनी तथा अन्य यूरोपीय देशों में बनने वाले नवीनतम वाहनों के बारे में भी समसामयिक जानकारियां होंगी।
उल्लेखनीय है कि डीडब्ल्यू-टीवी एशिया प्लस के कार्यक्रम कई चैनलों पर देखे जा सकेंगे। पूरे देश के केबल सेवा प्रदाता इसके द्वारा प्रसारित किए जाने वाले कार्यक्रमों को अपने चैनलों में स्थान देंगे।

मनोरंजन तथा विलासिता करों में कटौती लागू




* सिनेमाघरों तथा होटल-रेस्तरांओं की सेवाएं होंगी सस्ती

* मनोरंजन कर में 10 फीसदी तथा विलासिता कर में दो फीसदी की कटौती

* होटलों ने मंदी के मौसम में ग्राहकों को लुभाने की नई योजना तैयार कर ली


बेंगलूर। वित्त वर्ष 2009-10 के लिए कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येड्डीयुरप्पा द्वारा घोषित बजट प्रस्तावों में मनोरंजन कर में कटौती का प्रावधान किया गया था। यह प्रावधान 1 अप्रैल, बुधवार से लागू हो गया है। पर्यटन एवं आतिथ्य क्षेत्रों से जुड़े होटलों तथा रेस्तरांओं को भी राज्य सरकार की तरफ से कुछ कर राहत मिलने की बात बताई जा रही है। आर्थिक मंदी के इस दौर में कोई सरकार इससे बेहतर तोहफा और क्या दे सकती थी? राज्य में मनोरंजन कर जहां पूर्व में 40 फीसदी की दर से वसूला जाता था वहीं अब यह 30 फीसदी की दर से वसूला जाएगा। यहां के सिनेमाघरों में आने वाले सिने-प्रेमियों की संख्या वैश्विक मंदी के कारण हाल के समय में काफी घट गई थी जिसके कारण सिनेमाघरों ने अपने टिकटों के मूल्य में पहले ही कटौती कर दी है। मनोरंजन कर की दरों में कटौती के कारण टिकटों का मूल्य आगे भी कम किए जाने की संभावना बनी है।

इसी तरह की छूट होटलों में कमरों की बुकिंग पर लिए जाने वाले विलासिता कर (लक्जरी टैक्स) के मामले में भी दी गई है। जहां पहले 500 से 1000 रुपए किराए वाले होटलों के कमरों की बुकिंग पर 6 फीसदी की दर से राज्य सरकार कर वसूला करती थी, वहीं अब इन कमरों की बुकिंग पर मात्र 4 फीसदी की दर से कर वसूला जाएगा। 1000 रुपए से 2000 रुपए तथा 2000 रुपए से अधिक किराए वाले कमरों की बुकिंग पर भी क्रमश: 6 एवं 10 प्रतिशत की दर से कर वसूला जाएगा।

शहर के होटलों तथा रेस्तरांओं ने इस कर कटौती का फायदा अपने ग्राहकों तक पहुंचाने के साथ ही उनके लिए मनोरंजन के खास प्रबंध करने की योजना भी बना ली है। इन होटलों तथा रेस्तरांओं में ग्राहकों को हरेक सेवा पहले से कम दर पर मिलने के साथ ही उन्हें खास मनोरंजन भी मिलेंगे। इनमें आईपीएल ट्‌ वेंटी-20 मैचों का सीधा प्रसारण मुख्य रूप से शामिल है। यहां के कई होटलों ने अपनी सेवाओं को मूल्य के दृष्टिकोण से अधिक आकर्षक बनाने के लिए आईपीएल मैचों के दौरान नई रैक रेट (घोषित मूल्य) तय कर ली है। इनके ग्राहकों को इन होटलों में शीर्ष गुणवत्तापूर्ण सेवाएं पहले की अपेक्षा बेहतर तथा प्रतियोगी कीमतों पर मिलेंगी। चूंकि इस वर्ष आईपीएल मैचों को समूहबद्ध होकर स्टेडियम में देखने का मौका प्रत्येक भारतीय तथा बेंगलूरवासी को नहीं मिलेगा इसलिए इन होटलों ने बड़े तथा नियमित आकार वाले छोटे टेलीविजन सेट्‌स पर भी आईपीए मैचोें का प्रसारण करने की व्यवस्था भी कर ली है। इनके साथ कई क्लबों के नाम भी जुड़ गए हैं जो दक्षिण अफ्रीका में आयोजित होने जा रहे मैचों का अपने सदस्यों के लिए सीधा प्रसारण दिखाएंगे ताकि उनके सदस्य खेल का मजा मिल-जुलकर ले सकें।
जानकारी के मुताबिक, वैश्विक मंदी के बावजूद बेंगलूर के मनोरंजन तथा आतिथ्य व्यापार जगत में जो उत्साह पनपा है उसे अब कोई गुब्बारा नहीं माना जा सकता है। राज्य सरकार ने अपने बजटीय वादे पर खरे उतरते हुए इन कर कटौतियों के प्रस्तावों को एक शासकीय अधिसूचना जारी कर निर्धारित तिथि से ही जारी कर दिया है। स्टांप तथा पंजीयन विभाग ने भी अपनी तरफ से स्टांप शुल्क में कटौती कर व्यापार जगत का उत्साह बढ़ाया है।

Monday, March 30, 2009

मुलायम पर माया के कठोर तीर



वरुण गांधी पर रातों-रात राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाना, दरअसल कहीं पर निगाहें-कहीं पर निशाना कहावत को चरितार्थ करने वाली घटना है। वरुण तो मोहरा बन गए हैं। पीलीभीत की सात और आठ मार्च की जनसभाओं में यदि वे उग्र भाषण नहीं देते तो उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को मुसलमान मतदाताओं को बसपा के पक्ष में एकजुट करने का यह मौका ही नहीं मिलता। उनके निशाने पर वरुण नहीं, समाजवादी पार्टी और उसके मुखिया मुलायम सिंह यादव के साथ-साथ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं। भाजपा भी इस प्रकरण से लाभ लेना चाहती थी, लेकिन चौबीस घंटे के भीतर मायावती ने जिस तरह वरुण
गांधी पर रासुका तामील कराकर मामले को तूल दिया, उससे साफ हो गया है कि एेसा करके वे राज्य के 19 प्रतिशत मुसलमानों को खुश करना चाहती हैं।
सर्वविदित है कि देश में सर्वाधिक मुस्लिम मतदाता उत्तर प्रदेश में ही रहते हैं। आजादी के बाद 1989 तक हुए चुनावों में से अधिकांश में मुस्लिम मतदाताओं ने कांग्रेस को ही वोट दिया, लेकिन बाबरी विध्वंस के बाद कांग्रेस से उनका मन खट्टा हुआ। यूपी में वे मुलायम सिंह यादव की पार्टी को ताकत देने लगे तो अन्य राज्यों में उन्होंने दूसरे धर्मनिरपेक्ष दलों को मजबूती देनी शुरू कर दी। जैसे आंध्र प्रदेश में वे तेलुगूदेशम को, तमिलनाड़ु में डीएमके, एडीएमके, पीएमके, केरल और पश्छिम बंगाल में वाममोर्चा को, कर्नाटक में जनतादल एस को, बिहार में राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल एकीकरण को वोट देने लगे तो जहां कोई विकल्प नहीं दिखा, वहां भाजपा को परास्त करने के लिए उसने कांग्रेस को भी वोट दिया। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का जनाधार धीरे-धीरे सिकुड़ता चला गया और सपा के अलावा बसपा दूसरी बड़ी ताकत बनकर उभरी।
मायावती ने पहले दलितों को अपने साथ एकजुट किया। इसके बाद उन्होंने ब्राह्मण मतदाताओं को अपने साथ जोड़ा और अब मुसलमान मतदाताओं को रिझाकर वही समीकरण बनाने की ओर अग्रसर हैं, जिसके बूते कांग्रेस लंबे समय तक राज्य और
केन्द्र में राज करती रही। गौरतलब बात है कि यूपी में 19 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं जो लोकसभा की 35 और विधानसभा की 115 सीटों को प्रभावित करते हैं।
यह एक विडंबना है कि सभी पार्टियां समय-समय पर मुसलमानों से मुख्यधारा की पार्टियों को वोट देने की मांग तो करती हैं, लेकिन ये दल उतनी तादाद में उन्हें टिकट नहीं देते जितना देना चाहिए। 2004 के पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 417 प्रत्याशी खड़े किए, जिसमें से सिर्फ 33 मुसलमान प्रत्याशी थे। इसमें से सिर्फ 10 जीते। बीएसपी ने 435 उम्मीदवारों में 50मुस्लिम प्रत्याशी उतारे, जिसमें 4 जीते। समाजवादी पार्टी ने 237 प्रत्याशियों में से 38 मुसलमानों को टिकट दिया, जिसमें से 7 जीते। सीपीएम ने 70 में से 10 मुस्लिमों को खड़ा किया जिसमें से 5 जीते। इन आंकड़ों की गहराई में जाने पर यही पता चलता है कि सीपीएम को छोड़कर शेष दलों ने मुस्लिम बहुल इलाकों से ही मुस्लिम प्रत्याशियों को खड़ा किया।




ऐसा सिर्फ 2004 के ही लोकसभा या किसी एक विधानसभा चुनाव में ही नहीं हुआ, हर छोटे-बड़े चुनाव में मुस्लिम वोटरों के मद्देनजर इसी तरह से कैंडिडेट तय किए जाते हैं। बीएसपी सुप्रीमो मायावती की सोशल इंजीनियरिंग के करिश्मे को थोड़ी देर भूल कर अगर यूपी के पिछले विधानसभा चुनाव नतीजों पर गौर करें तो पाएंगे कि जहां-जहां मायावती के मुस्लिम कैंडिडेट बीजेपी को हराने में सक्षम थे, वहां मुसलमानों ने बीएसपी के पक्ष में वोट डाला। पिछले कुछ महीने से मायावती लगातार कद्दावर मौलवियों को अपने पक्ष में लाने की कोशिश कर रही हैं। लखनऊ में ही मायावती ने कई मुस्लिम सम्मेलन कर डाले हैं। वरुण पर रासुका के पीछे मायावती की मुसलमानों को खुश करने की मानसिकता ही नजर आ रही है। उनके इस दांव से कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के नेताओं की सिट्टी-पिट्टी गुम है।

गोविंदा आउट, नगमा इन



फिल्म अभिनेता व उत्तर मुंबई के सांसद गोविंदा इस बार लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे। यह घोषणा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने की।महाराष्‍ट्र प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में चह्वाण ने पत्रकारों से कहा कि गोविंदा ने चुनाव लड़ने को लेकर अनिच्छा जाहिर की है। उन्होंने कहा कि हमने राज्य से चुने गए पार्टी के सभी सांसदों की उपस्थिति में उनके सामने मुंबई उत्तर क्षेत्र से चुनाव लड़ने का प्रस्ताव रखा, लेकिन उन्होंने इसे लेकर अपनी अनिच्छा जाहिर की। चव्हाण ने कहा कि मुंबई उत्तर संसदीय क्षेत्र की सीट से अभिनेत्री नगमा ने पार्टी का टिकट मांगा है। नगमा ने रविवार को कहा कि वह मुंबई उत्तर या फिर मुंबई उत्तर-पश्चिम क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं।

विदित हो कि गोविंदा ने वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता राम नाइक को हराया था।

गौरतलब है कि होली के दिन किन्नरों में नोट बांटने की घटना को लेकर भी गोविंदा विवादों में घिर गए थे। चुनाव आयोग ने इस मामले में जांच के आदेश दिए हैं।

बोल-चाल की हिन्दी ज़रूरी




कार्यालय के विभिन्न विषयों के लिए निर्धारित अलग-अलग शब्दावलियों के बीच में आम बोलचाल की हिन्दी शब्दावली ठगी सी खड़ी होकर अपरिचित शब्दों को देखती रही। प्रयोगकर्ता इन शब्दों को देखकर विचित्र भाव-भंगिमाएं बनाते थे। परिणामस्वरूप अधिकांश समय यह नए शब्द प्रयोगकर्ता की देहरी तक ही पहुँच कर आगे नहीं बढ़ पाते थे और आज भी लगभग यही स्थिति है। भाषाशास्त्र के अनुसार यदि शब्दों का प्रयोग न किया जाए तो शब्द लुप्त हो जाते हैं। तो क्या राजभाषा के अनेकों शब्द प्रयोग की कसौटी पर कसे बिना ही लुप्त हो जाएंगे ? यह आशंका अब ऊभरने लगी है जबकि राजभाषा अधिकारियों की राय में इस प्रकार की सोच समय से काफी पहले की सोच कही जाएगी। राजभाषा अधिकारियों का तो कहना है कि राजभाषा की पारिभाषिक, तकनीकी आदि शब्दावलियों का खुलकर प्रयोग हो रहा है। एक हद तक यह सच भी है क्योंकि इन शब्दावलियों के प्रयोगकर्ता राजभाषा अधिकारी ही हैं। इन शब्दावलियों का अधिकांश प्रयोग अनुवाद में किया जाता है जिसे कर्मचारियों का छोटा प्रतिशत समझ पाता है। राजभाषा कार्यान्वयन की इसे एक उपलब्धि माना जाता है तथा कहा जाता है कि इन शब्दावलियों को कर्मी समझ रहे हैं अतएव इन शब्दावलियों को स्वीकार किया जा रहा है। सकार और नकार के द्वंद्व में राजभाषा ऐसे प्रगति कर रही है जैसे तूफानी दरिया में एक कश्ती। राजभाषा अधिकारी चप्पू चलाता मल्लाह की भूमिका निभाते जा रहा है।
हिंदी के साहित्यकार अपनी रचनाओं में जब कभी भी सरकारी कार्यालयों के पात्रों का सृजन करते हैं तो अक्सर वह पात्र अंग्रेज़ी मिश्रित भाषा बोलता है जबकि रचनाकार यदि राजभाषा की कुछ शब्दावलियों का प्रयोग करें तो पाठक राजभाषा की शब्दावली को सहजता से स्वीकार कर सकता है। यह मात्र एक संकेत है। राजभाषा की शब्दावली को आसान करना तर्कपूर्ण नहीं है क्योंकि सरलीकरण के प्रयास से अर्थ का अनर्थ होने की संभावना रहती है। केन्द्रीय सरकार के विभिन्न कार्यालयों, उपक्रमों तथा राष्ट्रीयकृत बैंकों द्वारा राजभाषा कार्यान्वयन के सघन प्रयास किया जा रहा है यदि हिंदी साहित्यकार भी इस प्रयास में योगदान करें तो राजभाषा की शब्दावली अपनी दुरूहता तथा अस्वाभाविकता के दायरे से सफलतापूर्वक बाहर निकल सकती है।